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भगवान महावीर
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आवश्यक है। हम देखते हैं कि आज कल जो आदमी दूसरे बलवान का मुकाबिला करने में असमर्थ होता है, वह चुप्पी साध कर अलग हो जाता है-कहता है मैने उसे क्षमा कर दिया, पर क्षमा का वास्तविक अर्थ यह नहीं है। यह क्षमा तो कायरता का प्रति रूप है। जो प्रतिहिंसा चुकाने में असमर्थ है उसकी क्षमा का मुल्य क्या हो सकता है। वास्तविक क्षमा उसे कहते हैं जो एक शक्तिशाली बुद्धिमान की ओर से किसी दुर्बल अज्ञानी पर उसके किये हुए अज्ञानमय कृत्यों के प्रति की जाती है । उस अज्ञानी के प्रतिकार का पूर्ण बल रखते हुए भी उसके अज्ञान को दूर करने की सुभावनाओं से जो क्षमा करता है उसीकी क्षमा का महत्व है । उसी क्षमा के द्वारा जगत में से क्रोध की भावनाओं का नाश होकर शान्ति की स्थापना हो सकती है। भगवान महावीर यदि उस सर्प के विष से भयभीत होकर भगते हुए उसे क्षमा कर देते तो उस दशा में इनको क्षमा का कुछ भी मूल्य न होता। न सर्प का ही उद्धार होता-न उनके ही प्राण बचते । पर उनके अन्दर ऐसी शक्ति थी कि जिसके प्रताप से सर्प उनका कुछ भी न कर सका। यदि वे चाहते तो उसका नाश कर सकते थे। ऐसी शक्ति की विद्यमानता में भी उन्होंने उस स्थान पर उसका उपयोग न किया और उसके प्रति क्षमा की अमोघ औषधि का व्यवहार कर उसका कल्याण कर दिया । महावीर के जीवन का वास्तविक सौन्दर्य इसी प्रकार की घटनाओं के अन्दर छिपा हुआ है। . एक दिन महावीर गंगा नदी उतरने के निमित्त दूसरे पथिकों
के साथ नौका पर आरूढ़ हुए। नौका जब नदी के मध्य में पहुँच Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com