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भगवान् महावीर
खयाल है भगवान बुद्ध की ही तरह उन्हें भी संसार के इन दुखमय दृश्यों से बड़ी घृणा हुई होगी। उस समय की सामाजिक अवस्था को देखकर अवश्य उनके कोमल हृदय में दया का संचार हुआ होगा और इन्हीं भावनाओं से प्रेरित होकर सत्य ज्ञान पाने के लिये उन्होंने दीक्षा ग्रहण की होगी।
प्रत्येक ऊँचे दर्जे के मनुष्य के जीवन में एक ऐसी स्थिति आती है, जब उसका हृदय तमाम विलास-सामग्रियों की ओर से विरक्त होकर वास्तविक उच्च सत्य को प्राप्त करने के लिये व्यग्र हो उठता है। विलास से विरक्त होकर वह आत्म-संयम की ऊँची भावनाओं को प्राप्त करना चाहता है।
आत्म-संयम को ऊँची भावनाओं का अाश्रय लेकर वह भोगों को भोग दे डालता है।
To live for pure life's sake jand to utilise wealth body etc. for living in that moner wis Lord Maha bir's Principle so he utilised his body full for self-denial or for life.
जोवन की शुद्ध स्थिति के निमित्त जीना यही जीवन का प्रधान उद्देश्य है । पैसा, राज्य, विलास आदि वस्तुएँ तो शरीर के बाह्य साधन हैं। भगवान महावीर ने पहले शरीर के इन बाहरी साधनों का सदुपयोग किया। उसके पश्चात वे सुखको प्राप्त करने के निमित्त सचेष्ट हुए । एक अंग्रेज लेखक लिखते हैं।
Money connot make us happy, friends cannot make us happy, success Cannot make us happy, health strength cannot make us bappy, All these, make for happiness but none of them cin secure it. Nature may
do all she cau, she may give us fame, health, money Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com