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भगवान् महावार
में गौशाला के द्वारा स्थापित किया हुआ आजीविक सम्प्रदाय सब से अधिक लोक परिचित था, सम्राट अशोक ने अपने शिलालेखों में ब्राह्मणों और जैनियों के साथ इस सम्प्रदाय का भी विवेचन किया है। इससे मालूम होता है कि, गौशाला बुद्ध और महावीर का प्रति स्पर्धी था लेकिन अब उसका चलाया हुआ धर्म लोप हो गया है।
हाल के नवीन अन्वेषणों से इतना स्पष्ट मालूम होता है कि गौशाला एक समर्थ मत प्रवर्तक था, किसी कारणवश महावीर के साथ उसका मत भेद हो गया था, और उस मत भेद के कारण भविष्य में जाकर वह उनका विरोधी हो गया था। इस विरोध की छाप उस समय जैन धर्मानुयायियों के हृदय पर बैठ गई होगी, और भविष्य में वह घटने के बदले प्रति दिन बढ़ती गई होगी, एवं जिस समय जैन सिद्धान्त और कथाएं लेख बद्ध हुई, उस समय जैनी लोग उसको इस रूप में मानने लग गये होंगे और इसी कारण उन के ग्रन्थों में भी उनकी मान्यता के अनुसार उसका वैसा ही विकृत रूप लेखों में चित्रित कर दिया होगा । क्योंकि हम देखते हैं कि बौद्ध ग्रन्थों में उसका रूप इतना विकृत नहीं दिखाई पड़ता है। इससे मालूम होता है कि गोशाला वास्तव में वैसा नहीं था जैसा जैन लेखकों ने उसे चित्रित किया है, सम्भव है हमारो दृष्टि से उसका तत्वज्ञान कुछ भ्रम पूर्ण हो पर यह अवश्य स्वीकार करना ही पड़ेगा कि वह एक तत्वज्ञानी था।
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