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भगवान् महावीर
नामक कर्म के बंधे हुए जीव अन्तकुल, भिक्षाकुल, तुच्छकुल, दरिद्रकुल, प्रान्सकुल और ब्राह्मणकुल में जन्म नहीं लेते प्रत्युत क्षत्रियकुल, हरिवंशकुल, आदि इसी प्रकार के विशुद्ध कुलों में जन्म लेते हैं। यहाँ पर हमें यह नहीं मालूम होता कि कल्प सूत्र के रचयिता "विशुद्ध कुल" का क्या अर्थ लगाते हैं । क्या ब्राह्मण लोग विशुद्ध कुल के नहीं थे, इस स्थान पर मालूम होता है कि जैनियों ने ब्राह्मणों को बदनाम करने ही के लिए इस उपपत्ति की रचना की है।
(२) उस समय ब्राह्मणों, जैनियों और बौद्धों के बीच में भयङ्कर संघर्ष चल रहा था । तत्कालीन ग्रन्थों में इस विद्वेष का प्रतिबिम्ब साफ़ साफ़ दिखलाई पड़ रहा है। ब्राह्मण ग्रन्थों में जैनियों और बौद्धों को एवं जैन और बौद्ध ग्रन्थों में ब्राह्मणों को बहुत ही नीचा दिखलाने का प्रयत्न किया है । सम्भवतः महावीरस्वामी के गर्भ परिवर्तन की कल्पना भी इसी उद्देश्य की सिद्धि के लिये की गई हो। क्योंकि इसके पश्चात् ही हम यह भी देखते हैं कि भगवान महावीर की समवशरण सभा के ग्यारह गणधर भी ब्राह्मण कुलोत्पन्न ही थे। यदि वे अशुद्ध समझे जाते तो कदाचित उनके गणधर भी न होने पाते।
३-मालूम होता है कि भद्रबाहु स्वामी ने बहुत पीछे ब्राह्मण कुल को इन सात कुलों के साथ रख दिया है। क्योंकि ब्राह्मण कुल के पहले जितने भी नाम आये हैं जैसे अन्तकुल भिक्षाकुल, तुच्छकुल आदि के, सब गुण के सूचक हैं। फिर केवल अकेला ब्राह्मण कुल ही क्यों "जाति दर्शक" रक्खा गया। इससे मालूम
होता है कि भद्रबाहु के समय में ब्राह्मणों और जैनियों का संघर्ष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com