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भगवान् महावीर
का नाश करने के लिए प्रकृति ने केवल एक ही व्यक्ति को पर्याप्त न समझा । और इसीलिए उसने महावीर के पश्चात् तत्काल ही बुद्ध को भी पैदा कर दिया । बुद्ध ने और भी बुलन्द आवाज़ के साथ प्राचीन सामाजिक नियमों का विरोध किया। उन्होंने अपनी पूरी शक्ति के साथ प्राचीन सामाजिक प्रथा के साथ युद्ध करके उसे बिल्कुल ही नष्ट कर दिया। महावीर ने जैन-धर्म का मार्ग जितना विस्तीर्ण रक्खा था बुद्ध ने अपने धर्म का उससे मी अधिक विस्तीर्ण मार्ग रक्खा। जैन-धर्म के अन्तर्गत उस समय वेही लोग प्रविष्ट होने पाते थे जो परले सिरे के आत्मसंयमी और चरित्र के पक्के होते थे, पर बुद्ध धर्म में ऐसी कोई बाधा न थी
और इसी कारण से उसने बहुत ही कम समय में समाज के अधिकांश भाग पर अपना अधिकार कर लिया। सारे हिन्दुस्तान में अधिकांश बौद्ध और उनसे कम जैनी नजर आने लगे। ब्राह्मण-धर्म एक बारगी ही लुप्त सा हो गया ।
संसार की इन सब क्रान्तियों का जब हम गम्भीरता के साथ अध्ययन करते हैं तो मालूम होता है कि, जब समाज का एक बलवान और सत्ताधारी अङ्ग अपने स्थूल स्वार्थ की रक्षा के निमित्त असत्य और अधर्म का पक्ष लेकर अपने से दुर्बल अङ्ग को सत्य से बंचित रखने का प्रयत्न करता है तब उस पराजित सत्य' की भस्म में से एक ऐसी दिव्य चिनगारी पैदा होती है कि, जिसकी प्रचण्ड ज्वाला में उस अधर्म और अनीति की आहुति लग जाती है । उस दिव्य प्रकाश के. उस दिव्यविभूति के प्रादुर्भाव में नीति की अपेक्षा अनीति और धर्म की अपेक्षा अधर्म का ही
अधिक हाथ रहता है। पराजित और प्रताड़ित सत्य को पुनः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com