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भगवान् महावीर
११६ मनुष्य की उन्हीं प्रवृत्तियों का क्रमविकास है जो साधारण मनुष्यों में भी पाई जाती हैं। मनोविज्ञान के उन सब सूक्ष्म तत्वों का महावीर के जीवन में समावेश था। जो हम लोगों के अन्दर भी पाये जाते हैं। अन्तर केवल इतना ही था कि हम लोग अपनी कमजोरी के कारण या यों कहिये कि नैतिकबल की हीनता के कारण उन तत्वों का विकास करने में असमर्थ रहते हैं । हम प्रकृति की दी हुई अपार शक्तियों को अपनी दुर्बलता के कारण नहीं पहचान पाते हैं और महावीर ने अपने असीम पुरुषार्थ के तेज से, अपने अपार नैतिक बल के साहस से अपनी सब शक्तियों को पहचान लिया था। उन्होंने बहुत ही बहादुरी के साथ उन सब मोह के आवरणों को फाड़कर फेंक दिया था जो मनुष्य की दिव्य शक्तियों पर पड़े रहते हैं।
"महावीर," "महावीर" थे, उनमें इच्छाओं को दमन करने की असीम शक्ति थी। उनमें मनोविकारों पर विजय पाने का अद्भुत पुरुषार्थ था । वे हमारे समान साधारण मनुष्यों की तरह कमजोर न थे-इच्छाओं के गुलाम नथे । उनमें चरित्र का तेज था, ज्ञान का बल था वे मानव जीवन की वास्तविकता को समझते थे । हां वे उन तत्त्वों के अनुगामी थे जिनके द्वारा मनुष्य परम-पद को, अपने वास्तविक रूपको प्राप्त कर सकता है। इसी कारण भगवान महावीर हमारे आदर्श हैं । इसी कारण वे संसार के पूजनीय हैं।
भगवान् महावीर में इतर लोगों से क्या विशेषता थी। वे एक साधारण राजघराने में पैदा हुए थे। हमारे इतने सुयोग्य भी उनको प्राप्त न थे। यह बात हर कोई जानता है कि, एक
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