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भगवान् महावार
बात ने बौद्धों के विकास में बहुत बड़ी बाधा दी। क्योंकि इस विषय में बौद्धमत के अनुयायी ब्राह्मण दार्शनिकों के सन्मुख पंजे टेक देते थे। अन्त में अपने धर्म का अस्तित्व रखने के निमित्त इस महान प्रश्न का जिसके विषय में कि स्वयं बुद्ध ने कोई निश्चयात्मक बात न कही थी निपटारा करने के लिए बौद्धों की सभा हुई। जिसमें बौद्ध-धर्म महायान, हीनयान
आदि आदि कई सम्प्रदायों में विभक्त हो गया। आज भी लङ्का, जावा, सुमात्रा आदि द्वीपों में जहाँ कि ब्राह्मण दार्शनिकों को पहुँच न थी, बुद्ध का निर्वाण विषयक सिद्धान्त अपने असली रूप में प्रचलित है। - इसके अतिरिक्त कई ऐसे कारण हैं जिनसे बौद्ध-धर्म उस समय में सर्वव्यापी हो गया, और जैन धर्म अपनी मर्यादित स्थिति में ही रहा । सिवाय इसके जैन-धर्म की मजबूती के और बुद्धधर्म की अस्थिरता के भी कई कारण हैं। जिनका विवेचन इस लघुकाय ग्रन्थ में असम्भव है।"
ऐतिहासिक खंड समाप्त ।
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