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भगवान् महावीर याणी “त्रिशला” ही कहा है, इससे तो साफ जाहिर होता है कि भगवान् महावीर के पिता एक मामूली जागीरदार ही थे, या अधिक से अधिक एक छोटे राज्य के स्वामी होंगे। लेकिन इसमें एक बात विचारणीय है वह यह है कि, राजा सिद्धार्थ का सम्बन्ध वैशाली के समान प्रसिद्ध राजवंश से हुआ था इससे यह मालूम होता है कि, सिद्धार्थ चाहे कितने ही साधारण राजा क्यों न हों, पर उनका आदर तत्कालीन राजाओं के अन्दर बहुत अधिक था। त्रिशला रानी के माता पिता ।
त्रिशला रानी के माता पिता के सम्बन्ध में भी दिगम्बर और श्वेताम्बर ग्रन्थों में बहुत मतभेद पाया जाता है । दिगम्बर ग्रन्थों में त्रिशला को सिद्धदेश के राजा चेटक की पुत्री लिखा है और कल्पसूत्र तथा अन्य श्वेताम्बर ग्रन्थों में त्रिशला रानी को वैशाली के राजा चेतक की बहन लिखा है । यह दोनों चेतक एक ही थे या भिन्न भिन्न यह निश्चय नहीं कहा जा सकता । बौद्ध ग्रन्थों में भी चेतक का राजा की तरह वर्णन नहीं पाया जाता । बल्कि यह पाया जाता है कि उस राज्य का प्रबन्ध एक मण्डल के द्वारा होता था और राजा उस मण्डल का प्रमुख समझा जाता था, राजा के हाथ में वाइसराय और सेनापति की पूरी शक्तियां रहती थीं । इस मण्डल के अन्तर्गत अठारह विभाग थे । इन सब विभागों पर एक व्यक्ति नियुक्त था और इसके बदले में इन सब लोगों को छोटे छोटे राज्य का स्वामी बना दिया जाता था । “निर्यावलिसूत्र” नामक बौद्ध ग्रन्थ से पता चलता है कि चम्पानगरी के राजा “कुरिणक" ने जब चेतक के उपर चढ़ाई की,
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