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भगवान् महावीर
के सरस्वती गच्छ को पट्टावली में विक्रम सम्वत् और विक्रम जन्म में १८ वर्ष का अन्तर माना है । यथा “वीरात् ४९२ विक्रम जन्मान्तर वर्ष २२ राज्यान्त वर्ष ४" विक्रम विषय की गाथा की भी यही ध्वनि है कि वे ६७ वें या १८ वें वर्ष में सिंहासन पर बैठे। इससे सिद्ध है कि ४७० वर्ष जो जैन निर्वाण और गर्दभिल्ल राजा के राज्यान्त तक माने जाते हैं वे विक्रम जन्म तक हुए । (४९२ = २२+ ४७०) अतः विक्रम जन्म (४७० म. नि.) में १८ और जोड़ने से निर्वाण का वर्ष विक्रमीय संवत् की गणना में निकलेगा । अर्थात् विक्रम सम्वत् से ४८८ वर्ष पूर्व अर्हन्त महावीर का निर्वाण हुआ। अब तक विक्रम संवत के १९७१ वर्ष और अब (१९८१) बीत गये हैं, अतः ४८८ वि० पू० १९७१ = २४५९ वर्ष पाज से पहले महावीर निर्वाण का संवत्सर ठहरता है। पर आधुनिक जैन पत्रों में नि० सं० २४४१ देख पड़ता है। इसका समाधान कोई जैन सज्जन करें तो अच्छा हो । १८ वर्ष का अन्तर गर्दभिल्ल और विक्रम सम्वत् के वीर गणना छोड़ देने से उत्पन्न हुआ मालूम होता है । बौद्धलोग, लंङ्का, श्याम आदि स्थानों में बुद्ध निर्वाण के आज २४४८ वर्ष मानते हैं । हमारी यह गणना उससे भी ठीक मिल जाती है । इससे सिद्ध हो जाता है कि, महावीर बुद्ध के पूर्व निर्वाण को प्राप्त हुए । नहीं तो बौद्ध गणना और जैन गणना से अर्हन्त का अन्त बुद्ध निर्वाण से १६ या १७, वर्ष पश्चात् सिद्ध होगा जो पुराने सूत्रों की गवाही के विरुद्ध पड़ेगा।
जायसवाल महोदय के उपरोक्त प्रमाण बहुत अधिक महत्व के हैं। जेकोबी महाशय के निकाले हुए निष्कर्ष में शङ्का के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com