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आराधनासमुच्चयम् ३१
वीतराग चारित्र का अविनाभावी निजशुद्धात्मानुभूति लक्षण वाला वीतराग सम्यक्त्व ही निश्चय
सम्यक्त्व है।
शुद्धोपयोग रूप निश्चय रत्नत्रय की भावना से उत्पन्न परम आह्लादरूप सुखामृत का आस्वादन ही उपादेय है, इन्द्रियजन्य सुख हेय है, ऐसी रुचि प्रतीति ही निश्चय सम्यग्दर्शन है, परन्तु ऐसी रुचि वीतराग चारित्र के बिना नहीं होती है अतः वीतराग चारित्र के साथ अविनाभाव सम्बन्ध रखने वाला वीतराग सम्यग्दर्शन ही निश्चय सम्यग्दर्शन है।
इस प्रकार सराग सम्यक्त्व और वीतराग सम्यक्त्व ही क्रमशः व्यवहार और निश्चय सम्यग्दर्शन
हैं ।
औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक के भेद से सम्यक्त्व तीन प्रकार का है, उनका लक्षण पूर्व में लिखा जा चुका है।
ये तीनों सम्यग्दर्शन भी सराग और वीतराग सम्यग्दर्शन में गर्भित हैं। क्योंकि क्षायिक सम्यग्दर्शन वीतराग सम्यग्दर्शन है और औपशमिक एवं क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन सराग हैं।
आज्ञा सम्यक्त्व आदि के भेद से सम्यग्दर्शन दश प्रकार का भी है। जो वीतराग प्रभु ने कहा है वह सत्य है, वास्तविक है, अन्यथा नहीं है, अन्य प्रकार नहीं है, प्रभु की आज्ञा के प्रति ऐसी दृढ़ प्रतीति है, वह आज्ञा सम्यक्त्व है।
निर्ग्रन्थ मुनिराज की चर्या देखकर अर्थात् मोक्षमार्ग की क्रिया को देखकर जिनधर्म में रुचि होना मार्ग सम्यग्दर्शन है।
तीर्थंकर, बलदेव, चक्रवर्ती आदि त्रेसठ शलाका पुरुषों के जीवनचरित्र सुनकर अंतरंग में जिनधर्म के प्रति जो श्रद्धा वा प्रतीति होती है वह उपदेश सम्यक्त्व है क्योंकि हमारे आचार्यों ने धर्मोपदेश नामक स्वाध्याय का स्वरूप पुराण पुरुषों का कथन करना ही कहा है। अर्थात् प्रथमानुयोग को सुनकर श्रद्धान होना उपदेश सम्यक्त्व है।
मुनिजन के चारित्र वा अनुष्ठान को सूचित (कथन) करने वाले मूलाचार आदि आचारशास्त्रों ( चरणानुयोग ) को सुनकर जो जिनधर्म एवं आत्मतत्त्व का विश्वास होता है, वह सूत्र सम्यग्दर्शन है।
शंका - मार्ग सम्यग्दर्शन एवं सूत्र सम्यग्दर्शन में क्या अन्तर है ? दोनों में ही मुनिचर्या कारण है? समाधान - मार्ग सम्यग्दर्शन में मुनिचर्या का अवलोकन है। उनके स्वरूप को देखकर प्रतीति होती हैं और उपदेश सम्यक्त्व में शास्त्र के द्वारा या विद्वानों के मुख से सुनकर श्रद्धान होता है।
जिन जीवादि पदार्थों के समूह का वा गणितादि विषयों का ज्ञान दुर्लभ है, उनका किन्हीं बीजपदों