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आराधनासमुच्चयम् ९२४०
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सीतोदा नदी हदों के दक्षिण द्वारों से प्रवेश करके उनके उत्तरी द्वारों से बाहर निकल जाती है। ह्रद नदी के दोनों पार्श्व भागों में निकले रहते हैं । अन्तिम द्रह से २०१२ यो. उत्तर में जाकर पूर्व व पश्चिम गजदन्तों की वन की वेदी आ जाती है। इसी प्रकार उत्तर कुरु में भी सीता नदी के मध्य ५ द्रह जानना । उनका सम्पूर्ण वर्णन उपर्युक्तवत् है । ( इस प्रकार दोनों कुरुओं में कुल १० द्रह हैं। परन्तु मतान्तर से द्रह २० हैं । ) मेरु पर्वत की चारों दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में पाँच हैं। उपर्युक्तवत् ५०० योजन अन्तराल से सीता व सीतोदा नदी में ही स्थित हैं। इनके नाम ऊपर वालों के समान हैं।
(४) दस द्रह वाली प्रथम मान्यता के अनुसार प्रत्येक द्रह के पूर्व व पश्चिम तटों पर दस-दस करके कुल २०० कांचन शैल हैं। पर २० द्रहों वाली दूसरी मान्यता के अनुसार प्रत्येक द्रह के दोनों पार्श्व भागों में पाँच-पाँच करके कुल २०० कांचन शैल हैं।
(५) देवकुरु व उत्तर कुरु के भीतर भद्रशाल वन में सीतोदा व सीतानदी के पूर्व व पश्चिम तटों पर तथा इन कुरुक्षेत्रों से बाहर भद्रशाल वन में उक्त दोनों नदियों के उत्तर व दक्षिण तटों पर एक-एक करके कुल ८ दिग्गजेन्द्र पर्वत हैं।
(६) देवकुरु में सुमेरु के दक्षिण भाग में सीतोदा नदी के पश्चिम तट पर तथा उत्तरकुरु में सुमेरु के उत्तरभाग में सीता नदी के पूर्व तट पर तथा इसी प्रकार दोनों कुरुओं से बाहर मेरु के पश्चिम में सीतोदा के उत्तर तट पर और मेरु की पूर्व दिशा में सीता नदी के दक्षिण तट पर एक-एक करके चार त्रिभुवन चूड़ामणि नाम वाले जिन भवन हैं।
(७) निषध व नील पर्वतों से संलग्न सम्पूर्ण विदेह क्षेत्र के विस्तार समान लम्बी, दक्षिण उत्तर लम्बायमान भद्रशाल वन की वेदी है।
(८) देवकुरु में निषध पर्वत के उत्तर में, विद्युत्प्रभ गजदन्त के पूर्व में, सीतोदा के पश्चिम में और सुमेरु के नैर्ऋत्य दिशा में शाल्मली वृक्षस्थल है। सुमेरु की ईशान दिशा में, नील पर्वत के दक्षिण में, माल्यवंत गजदंत के पश्चिम में सीतानदी के पूर्व में जम्बू वृक्षस्थल है।
जम्बू व शाल्मली वृक्षस्थल :
देवकुरु व उत्तरकुरु में प्रसिद्ध शाल्मली व जम्बूवृक्ष है। ये वृक्ष पृथिवीमयी हैं। तहाँ शाल्मली या जम्बू वृक्ष का सामान्यस्थल ५०० योजन विस्तार युक्त होता है तथा मध्य में ८ योजन और किनारों पर २ कोस मोटा है। यह स्थल चारों ओर से स्वर्णमयी वेदिका से वेष्टित है। इसके बहुमध्य भाग में एक पीठ है, जो आठ योजन ऊँचा है तथा मूल में १२ और ऊपर ४ योजन विस्तृत है। पीठ के मध्य में मूलवृक्ष है, जो कुल आठ योजन ऊँचा है। उसका स्कन्ध दो योजन ऊँचा है तथा एक कोस मोटा है। इस वृक्ष की चारों दिशाओं में छह-छह योजन लंबी तथा इतने ही अंतराल से स्थित चार महाशाखाएँ हैं। शाल्मली वृक्ष की दक्षिण शाखा पर और जम्बूवृक्ष की उत्तरशाखा पर जिनभवन हैं। शेष तीन शाखाओं पर व्यन्तर देवों के भवन हैं । शाल्मली वृक्ष पर वेणु व वेणुधारी तथा जम्बू वृक्ष पर इस द्वीप के रक्षक आदृत व अनादृत