Book Title: Aradhanasamucchayam
Author(s): Ravichandramuni, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan

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Page 372
________________ आराधनासमुच्चयम् ३६३ ग्रन्थ रचयिता का और उनके ग्राम का नाम श्रीरविचन्द्रमुनीन्द्रैः पनसोगेग्रामवासिभिर्ग्रन्थः। रचितोऽयमखिलशास्त्रप्रवीणविद्वन्मनोहारी ।।२५२॥ अन्वयार्थ - पनसोगेग्रामवासिभिः - पनसोगे ग्राम में रहने वाले। श्रीरविचन्द्रमुनीन्द्रः - श्री रविचन्द्र मुनीन्द्र ने। अखिलशास्त्रप्रवीणविद्वन्मनोहारी - सम्पूर्ण शास्त्रीय ज्ञान में प्रवीण विद्वानों के मन को हरण करने वाला। अयं - यह आराधना - समुच्चय नामक । ग्रन्थः - ग्रन्थ । रचितः - रचा गया अर्थ - इस ग्रन्थ के रचनाकर्ता पनसोगे ग्राम में रहने वाले श्री रविचन्द्र मुनीन्द्र हैं। यह ग्रन्थ सर्वशास्त्र के ज्ञाता विद्वानों को रुचिकर है, अन्य को नहीं। जो अज्ञानी हैं, उनकी तत्त्व के कथन में रुचि, श्रद्धा नहीं होती। इस ग्रन्थ का नाम आराधना समुच्चय है। इस ग्रन्थ में दर्शनाराधना, ज्ञानाराधना, चारित्राराधना और तपाराधना का कथन है - जिसका पठन, मनन, चिंतन करने से आत्मीय आनन्द प्राप्त होता है, आत्मसुख का अनुभव होता है। ।। इत्याराधनासमुच्चयं समाप्तम् ।। AYAYA

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