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आराधनासमुच्चयम् २८२
को निष्कपट भाव से गुरु के समक्ष प्रगट कर दिया। उन दोषों को सुनकर किसी के समक्ष बाह्य में प्रगट नहीं करने वाले आचार्य को अपरिस्रावी गुण-धारक कहते हैं। यह आचार्य का अपरिस्रावी गुण है।
(८) निर्धापक या संतोषकारी - स्नेहयुक्त, मधुर, मनोहर, गंभीर और कर्णप्रिय वाणी से साधु के भूख, प्यासादि परीषहों के असह्य दुःखों को शांत करने में समर्थ होते हैं, यह आचार्य का निर्वापक या संतोषकारी गुण कहलाता है।
' (९) दिगम्बरत्व - जिन्होंने सर्व प्रकार के वस्त्रों को संयम का घातक समझ कर परित्याग कर दिया है, जातरूप नग्नत्व को गुणों का आधार समझ कर सदा दिगम्बर रहते हैं, ऐसे आचार्य का यह दिगम्बरत्व गुण है।
शंका - वस्त्र धारण करने से क्या हानि होती है ?
समाधान - वाल के मलिन होने पर उसे जल से धोना पड़ता है, जिससे छह काय के जीवों की विराधना होने से हिंसा होती है और हिंसा के सद्भाव में संयम की विराधना होती है। जब वस्त्र नष्ट हो जाता है वा जीर्ण-शीर्ण हो जाता है, तब चित्त में आकुलता उत्पन्न होती है तथा महान् पद के धारक आचार्यदेव को भी दूसरों से वस्त्र की याचना करनी पड़ती है, लंगोटी मात्र वस्त्र के नष्ट होने से क्रोध उत्पन्न होता है तो अधिक वस्त्रों का तो कहना ही क्या !
स्वकीय विकार को छिपाने के लिए वस्त्र धारण किया जाता है, परन्तु जिसके मन में विकार ही नहीं है, उसको वस्त्र से क्या प्रयोजन है। जैसे निर्विकारी बालक नग्न रहता है और विकार आते ही वस्त्र को धारण कर लेता है। अत: वीतराग - निर्विकारी मुनि दिगम्बर वा नग्न होते हैं, नग्नत्व उनका गुण है।
(१०) अनुद्दिष्ट भोजी - अपने निमित्त बने हुए भोजन का त्याग कर छियालीस दोषों और बत्तीस अन्तरायों से रहित निर्दोष आहार ग्रहण करने वाले को अनुद्दिष्टभोजी कहते हैं।
(११) शय्याधराभोजी - शय्याधर के तीन अर्थ हैं, वसतिका बनाने वाला, वसतिका संस्कार (सफाई, बिजली आदि लगाना) करने वाला और आप इस वसतिका में ठहरिये, ऐसा कहकर स्थान देने वाला। इन तीनों को शय्याधर कहते हैं। इन शय्याधरों के घर का आहार, पिच्छिका आदि ग्रहण नहीं करना । वसतिका देने वाले के घर का आहार लेने से अनेक दोष होते हैं।
यदि आचार्य शय्याधर का आहार लेंगे तो धर्म के लोभ से शय्याधर प्रच्छन्न रूप से आहार आदि की योजना करेंगे।
आहारादि के देने में असमर्थ, दरिद्र या लोभी वसतिका नहीं देगा, क्योंकि उसे जनापवाद का भय रहता है कि इस मंद-भाग्य को देखो, मुनिराज इसकी वसतिका में रहते हैं और यह उन्हें आहार भी नहीं देता है।