________________
आराधनासमुच्चयम् - २९३
- मति, श्रुतज्ञान के उचित गुण, अर्थ, व्यंजन और दोनों शुद्ध पढ़ना आदि गुणों के धारक । सुविशुद्धपरिणामाः - विशुद्ध परिणाम वाले जीव । ज्ञानाराधकसंज्ञाः - ज्ञानाराधना के आराधक नाम वाले। भवन्ति - होते हैं।
अर्थ – ज्ञानावरण कर्म के उदय से युक्त जीव को छद्मस्थ कहते हैं।
जिस घातिया कर्म के समूह के कारण जीव चारों गतियों में संसरण करते हैं वह घातिया कर्म का समूह छद्म वा संसार है और घातिया कर्म के साथ रहने वाले जीव छास्थ या संसारस्थ कहलाते हैं।
छद्मस्थ दो प्रकार के होते हैं: मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि ।
सम्यग्दृष्टि छद्मस्थ २ प्रकार के होते हैं : (१) सराग (२) वीतराग। चौथे गुणस्थान से दसवें गुणस्थान तक सराग छद्यस्थ है और ग्यारहवें, बारहवें गुणस्थान में वीतराग छद्मस्थ कहलाते हैं। वीतराग छद्यस्थ २ प्रकार के हैं, उपशांतकषाय और क्षीणकषाय । ११वें गुणस्थान में उपशांत कषाय वीतराग छद्यस्थ है और १२वें गुणस्थान में क्षीणकषाय वीतराग छद्मस्थ है।
क्षीणकषाय वीतरागछदस्थ अकृत्याकृत्य और कृतकृत्य के भेद से २ प्रकार के हैं।
क्षीणकषाय गुणस्थान में मोहरहित ३ घातिया प्रकृतियों का काण्डकघात होता है, उसमें अंत समय में प्रकृतियों का घात होता है, उसको कृतकृत्य कहते हैं अर्थात् काण्डकघात के बाद भी कुछ द्रव्य शेष रह जाता है, जिसका काण्डकघात संभव नहीं है। इस शेष द्रव्य को समय - समय प्रति उदयावली में प्राप्त करके एक-एक निषेक का क्रम से अन्तर्मुहूर्त काल द्वारा अभाव करता है, इस अन्तर्मुहूर्त काल में कृतकृत्य छद्यस्थ कहलाता है।
छद्मस्थ प्राणियों के संयोग से होने वाले मति आदि ज्ञान भी छद्मस्थ कहलाते हैं अर्थात् मति आदि क्षायोपशमिक ज्ञान छद्मस्थ ज्ञान हैं। जो इस छयस्थ ज्ञान से युक्त हैं वे छद्मस्थ ज्ञानी हैं।
अर्थ शुद्ध पढ़ना, अक्षर शुद्ध पढ़ना, दोनों शुद्ध पढ़ना, विनयपूर्वक पढ़ना, बहुमान से पढ़ना उपधान से पढ़ना, काल में स्वाध्याय करना और जिस गुरु से पठन किया है, उनका नाम नहीं छिपाना ये आठ ज्ञान के गुण हैं। इनका विशेष वर्णन ज्ञान आराधना में किया है। ज्ञान के उचित गुणधारी अर्थात् गुणों का धारी ज्ञान आराधना का आराधक होता है, क्योंकि जो अक्षर शुद्ध नहीं पढ़ता, अर्थ शुद्ध नहीं पढ़ता, अकाल में स्वाध्याय करता है, विनय से नहीं पढ़ता है, बहुमान और उपधान से नहीं पढ़ता है, गुरु का नाम छिपाता है, वह ज्ञान का आराधक नहीं, अपितु ज्ञान का विराधक है। इसलिए ज्ञान के आराधक को 'तदुचितगुणवन्तः' विशेषण दिया है।