Book Title: Aradhanasamucchayam
Author(s): Ravichandramuni, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan

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Page 342
________________ आराधनासमुच्ययम् ३३३ निर्दयता, क्लेश, ताप, हिंसा, असंतोष आदि कार्यों से जानी जाने वाली कृष्ण लेश्या है। कृष्ण लेश्या के वशीभूत हुआ प्राणी तीव्र क्रोधी, वैर को नहीं छोड़ने वाला, कलहकारी, दया- धर्म से रहित स्वभावी, दुष्ट, किसी के वश में नहीं होने वाला हो जाता है तथा कार्य अकार्य की विचार- रहितता, स्वच्छन्दता, माया, आलस्य आदि दुर्गुणों का पात्र भी कृष्ण लेश्या से ही होता है। बहुत निद्रा आना, दूसरों के ठगने में दक्षता, धन धान्यादिक के संग्रह करने की अति अभिलाषा आदि परिणाम नील लेश्या के लक्षण हैं। क्योंकि नील लेश्या के कारण ही यह संसारी प्राणी आलसी, मायावी, भीरु, असत्यभाषी, पातंच व अतिलोभी होता है। मात्सर्य, पैशून्य, पर- परिभव, आत्मप्रशंसा, पर-परिवाद, जीवननैराश्य, प्रशंसक को धनप्रदान, युद्ध में मरण की इच्छा, कर्तव्य- अकर्त्तव्य के विचार की शून्यता आदि कापोत लेश्या के लक्षण हैं। इस लेश्या के कारण ही यह प्राणी ईर्षालु, चुगलखोर आदि दुर्गुणों का पात्र बनता है। इन अशुभ लेश्याओं वाले चारित्र की आराधना नहीं कर सकते हैं। दृढ़ता, मित्रता, दयालुता, सत्यवादिता, दानशीलता, स्वकार्यपटुता, सर्वधर्म - समदर्शित्व आदि तेजो पीतलेश्या के लक्षण हैं। क्योंकि कर्त्तव्य और अकर्तव्य का विचार, सेव्य असेव्य का ज्ञान तथा दयालुता आदि गुण तेजो लेश्या के कारण ही होते हैं। सत्यवाक्, क्षमा, सात्विक दान, पाण्डित्य, देवशास्त्रगुरु की पूजा में रुचि आदि पद्य लेश्या के चिह्न हैं । - निर्वैर, वीतरागता, शत्रु के दोषों पर दृष्टि नहीं देना, निन्दा नहीं करना, पाप कार्यों से उदासीनता, श्रेयोमार्ग में रुचि आदि शुक्ल लेश्या के लक्षण हैं । इन छहों लेश्याओं में कृष्ण, नील और कापोत ये तीन लेश्याएँ अशुभ हैं, आर्त्तरौद्र ध्यान की कारण हैं। आर्त्तरौद्र ध्यान का लक्षण पहले लिखा है, वे अपध्यान कहलाते हैं । हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह की अभिलाषा अव्रत है । जो आत्मा को कषती है, दुःख देती है, वह कषाय है। जिस प्रकार किसान खेत का कर्षण करता है, तब खेती बहुत अच्छी होती है; उसी प्रकार कषाय के द्वारा जो आत्मा का कर्षण करता है, उसके कर्म रूपी खेती बहुत अच्छी होती है। अतः आत्मा का कर्षण करने वाले, कर्म रूपी धान्य को उत्पन्न करने वाले कारण को कषाय कहते हैं। मूलभूत कषाय चार प्रकार की है, क्रोध, मान, माया, लोभ । गुस्से को क्रोध कहते हैं। घमण्ड अभिमान को कहते हैं, छलकपट को माया कहते हैं और लालच को लोभ कहते हैं। इनके उत्तर भेद २५ हैं :

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