Book Title: Aradhanasamucchayam
Author(s): Ravichandramuni, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan

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Page 345
________________ आराधनासमुच्चयम् - ३३६ शरीरकी नीरोगता से अपने को उत्कृष्ट मानना साता गारव है, वा उत्कृष्ट भोजन-पान सामग्री के प्राप्त होने पर उनसे उत्पन्न सुख की लीला से मस्त होकर मोहमद करना साता गारव या रस गारव है। ये गारव चारित्र के घातक हैं। जिसके उदय से उद्वेग होता है, चित्त आकुलित होता है, वह भय कहलाता है। भय सात प्रकार का है। इहलोक भय, परलोक भय, अरक्षा (अत्राण) भय, अगुप्ति भय, मरण भय, वेदना भय और अकस्मात् भय। इस भव में मुझे इष्ट का वियोग और अनिष्ट का संयोग न होवे, इन पुत्र-पौत्रादिक के वियोग से भयभीत रहना इहलोक भय है। परभव में भावी पर्यायरूप अंश को धारण करने वाला आत्मा परलोक है और उस परलोक से जो कम्पन के समान भय होता है, उसको परलोक भय कहते हैं। मेरा स्वर्ग में वा अच्छी गति में जन्म होवे, मैं दुर्गति में न जाऊँ इत्यादि रूप से हृदय का आकुलित होना पारलौकिक भय कहलाता है। शरीर में वात, पित्त, कफादि के प्रकोप से होने वाली बाधा वेदना कहलाती है। मोह के कारण विपत्ति के पूर्व ही करुण क्रन्दन करना अथवा मैं नीरोग हो जाऊँ, मुझे कभी वेदना न हो, इस प्रकार की मूर्छा वा बार-बार चिंतन करना वेदना भय है। इस भव में मेरा कोई रक्षक नहीं है, पुत्र-पौत्रादि से में रहित हूँ, वृद्धापन में या रोगादिक के उत्पत्तिकाल में मेरी रक्षा कौन करेगा, ऐसा चिंतन करके आक्रन्दन करना अरक्षा या अत्राण भय है। शीत, उष्ण आदि से बचने का मेरे यहाँ कोई स्थान नहीं है, चौरादि से मुझे कोई पीड़ा न हो, ऐसा कोई गुप्त स्थान नहीं है, ऐसा चिंतन करके आकुलित होना वा आक्रन्दन करना अगुप्ति भय है। जीवन की अभिलाषा से अथवा पुत्र, पौत्र, धन, धान्यादि की ममता के कारण मृत्यु से भयभीत रहना मरणभय है। अकस्मात् होने वाले महान् दुःख आकस्मिक कहलाते हैं। जैसे बिजली आदि के गिरने से प्राणियों का मरण होता है। मुझ पर बिजली न गिर जाये, यह घर जीर्ण-शीर्ण है, इसकी छत मुझ पर न गिर जाये, पंखा, बिजली आदि के गिरने से मेरा अकस्मात् मरण न हो जाये, इत्यादि विचारों से मन का आकुलित रहना अकस्मात् भय है। ये सात प्रकार के भय सम्यग्दर्शन एवं सम्यक्चारित्र के घातक होने से चारित्र आराधना के उपाय नहीं हैं। आहारादिक की अभिलाषाओं को संज्ञा कहते हैं। आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा और परिग्रह संज्ञा के भेद से संज्ञा चार प्रकार की है।

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