Book Title: Aradhanasamucchayam
Author(s): Ravichandramuni, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan

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Page 335
________________ आराधनासमुच्चयम् ॥ ३२६ ज्ञान भावना से युक्त और! कालाद्यध्ययनयुतं • काल आदि में पढ़ना। ज्ञानस्य - ज्ञान की। आराधनोपाय: - आराधना का उपाय है। अर्थ - जिस प्रकार सम्यग्दर्शन के आठ अंग हैं, उसी प्रकार सम्यग्ज्ञान के भी आठ अंग हैं। शास्त्रों में लिखित अक्षर शुद्ध पढ़ना, अक्षरों का वाच्य जो अर्थ है उसको शुद्ध पढ़ना, अर्थ और अक्षर दोनों शुद्ध पढ़ना, काल में स्वाध्याय करना, विनय से पढ़ना, गुरु का नाम नहीं छिपाना, बहुमान से पढ़ना और उपधान युक्त पढ़ना, ये ज्ञान-आराधना के उपाय हैं, इन आठ अंग विहीन अध्ययन करने से ज्ञान आराधना नहीं होती। व्यंजन शुद्धि - क् आदि अक्षरों को व्यंजन कहते हैं, गणधरादि आचार्यों ने जो निर्दोष सूत्रों की रचना की है, उनको दोषरहित पढ़ना व्यंजन शुद्धि है। शंका - शब्द तो पौद्गलिक हैं, उनका शुद्ध उच्चारण ज्ञान विनय कैसे हो सकता है ? उत्तर - यद्यपि शब्द पौद्गलिक हैं, ज्ञानस्वरूप नहीं हैं, तथापि परार्थ जो श्रुतज्ञान है, वह शब्द की भित्ति पर ही खड़ा है, शब्द के द्वारा ही हम वस्तु को जान सकते हैं। शब्द ज्ञानोत्पत्ति का साधन है, अतः शब्दों को ज्ञान कह देते हैं और व्यंजनों को शुद्ध पढ़ना ज्ञान विनय कहलाता है। अक्षरहीन वा अशुद्ध पढ़ने से अर्थ का अनर्थ हो जाता है। __सिंहरथ और वीरसेन राजा के परस्पर शत्रुता थी सो अवसर पाकर वीरसेन ने सिंहस्थ पर चढ़ाई कर दी। जब वीरसेन बहुत दिन तक वापिस नहीं आ सका. तब उसने राज्य व्यवस्था सुचारु रूप से चलाने के लिए अपने मंत्री को पत्र लिखा और उसमें यह भी लिखा कि राजकुमार सिंह के पठन-पाठन की व्यवस्था अच्छी तरह करना। पूर्व में संस्कृत भाषा में पत्र लिखने का प्रचार था। अतः उसने लिखा "सिंहोऽध्यापयितव्यः'। इस शब्द का वास्तविक अर्थ था कि सिंह राजकुमार को अच्छी तरह से पठन कराना | परंतु पढ़ने वाले ने "सिंहः अध्यापयितव्यः" के स्थान पर एक अक्षर अ को छोड़कर पढ़ लिया, जिसका अर्थ हो गया राजकुमार को राज्य के कार्य में लगा देना । व्याकरण के अनुसार तो उक्त वाक्य के दोनों ही अर्थ होते हैं और दोनों ही पद शुद्ध थे क्योंकि घोष अक्षर एवं अकार इन दोनों के मध्यस्थ विसर्ग का 'ओ' होता है और अकार का लोप हो जाता है पर यहाँ केवल व्याकरण की आवश्यकता नहीं थी। कुछ अनुभव भी होना चाहिए था। बाल्यावस्था में पठन-पाठन छूट जाने से राजकुमार मूर्ख रह गया। जब राजा को यह ज्ञात हुआ तो उसने पत्र पढ़ने वाले को कड़ी सजा दी। अतः शास्त्रों का पठन करते समय गुरु परम्परा, आगम की कुशलता एवं प्रकरणवश अर्थ करना चाहिए। अक्षर मात्र हीन नहीं पढ़ना, क्योंकि अक्षर हीन पढ़ने से अर्थ का अनर्थ होता है और ज्ञान के अविनय से ज्ञानावरण कर्म का बंध होता है। अर्थ शुद्धि - शब्द के वाच्य को अर्थ कहते हैं, जैसे 'मानव' यह शब्द है, इसका वाच्य अर्थ

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