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आराधनासमुच्चयम् ० २५२
वातं पित्तं तथा श्लेष्म सिरा स्नायुश्च चर्म च । जठराग्निरिति प्राज्ञैः प्रोक्ताः सप्तोपधातवः ॥ इति ॥
अन्वयार्थ रसात् रस से रक्तं रक्त (खून) बनता है । ततः
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है। मांसात् - मांस से मेदः - मेद ( चर्बीीं)।
उत्पन्न होती हैं । ततः • उन हड्डियों से मज्जा मज्जा मज्जाशुक्रं प्रजाः - संतान उत्पन्न होती हैं। च
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और वातं वायु । पित्तं
स्नायुः स्नायु | च और जठराग्निः उदराम | इति सप्तोषधातवः • सात प्रकार के उपधातु । प्रोक्ताः
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रक्त से। मांस
मांस बनता प्रवर्त्तते प्रवर्त्त होता है। मेदसः मेद से। अस्थि हड्डियाँ
मज्जा और शुक्र । ततः
उससे । सिरा ।
पित्त । श्लेष्म - कफ सिरा
इस प्रकार | प्राज्ञैः - बुद्धिमानों ने ।
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कहे हैं। इति ।
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अर्थ - इस शरीर में सात धातु और सात उपधातु होते हैं। सात प्रकार के धातुओं के नाम - रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र ।
इन सात धातुओं का परस्पर कारण कार्य सम्बन्ध है। यह संसारी आत्मा जब जन्म लेता है, तब सर्वप्रथम आहारवर्गणा ग्रहण करता है, उससे शरीर की उत्पत्ति होती है। उस आहार वर्गणा के खल और रस भाग से कठोर हड्डी आदि अवयव बनते हैं। अतः रस से रक्त, रक्त से मांस, मांस से मेदा, मेद से हड्डियाँ, हड्डियों से मज्जा और मज्जा से वीर्य उत्पन्न होता है तथा वीर्य से संतान उत्पन्न होती है। ये शरीर में सात धातुएँ हैं ।
वायु, पित्त, कफ, सिरा ( शरीर की छोटी-छोटी नसें), स्नायु ( उससे कुछ बड़ी रक्तवाहिनी नसें ) चर्म और जठराग्नि ये सात उपधातु हैं। इन धातु- उपधातु का निलय यह शरीर है। इस शरीर में कोई भी वस्तु पवित्र नहीं है।
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शरीर रूपी अपवित्र घर
अस्थिघटितं सिरासंबद्धं चर्मावृतं च मांसेन ।
व्यालिप्तं किल्विषवसुकथं नु शुचि देहगेहमिदम् ।। १६८ ।।
अन्वयार्थ - अस्थिघटितं हड्डियों से निर्मित । सिरासंबद्धं - सिराओं से बँधा हुआ । चर्मावृतं चमड़े से आच्छादित । मांसेन मांस के द्वारा । व्यालिप्तं लिप्त । किल्विषवसु पापरूपीधन से भरित । इदं - यह । देहगेहं शरीर रूपी घर । नु - अहो । शुचि
पवित्र । कथं कैसे हो सकता है ?
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अर्थ - इस शरीर को आचार्यदेव ने घर की उपमा दी है। जिस प्रकार घर का निर्माण करने के लिए बड़े- बड़े स्तंभ, छोटी-छोटी सींकें हैं, सीमेंट आदि आच्छादित है और चूने आदि से लिप्त होता है, उसी प्रकार इस शरीर में हड्डियाँ हैं, वे स्तंभ हैं जिन पर यह तन स्थित है, निर्मित है। उसमें छोटी-छोटी सिराएँ सीके हैं, जिनसे यह बँधा हुआ है। मांस से लिपा हुआ है और चर्म से आच्छादित है, जिसमें पापरूपी धन भरा हुआ है। ऐसा यह शरीर रूपी घर पवित्र कैसे हो सकता है ?