________________
आराधनासमुच्चयम्.११४
परमभाव ग्राहक नय से भव्य व अभव्य पारिणामिक स्वभावी हैं, कर्म व नोकर्म मूर्त स्वभावी हैं, पुद्गल के अतिरिक्त शेष द्रव्य अमूर्त स्वभावी हैं; काल व परमाणु एकप्रदेशस्वभावी हैं। जो औदयिकादि अशुद्ध भावों से तथा शुद्ध क्षायिक भाव के उपचार से रहित केवल द्रव्य के त्रिकाली परिणामाभाव रूप स्वभाव को ग्रहण करता है उसे परमभावग्राही नय जानना चाहिए। सर्वविशुद्ध पारिणामिक परमभाव ग्राहक शुद्ध उपादानभूत शुद्ध द्रव्यार्थिक नय से जीव कर्ता, भोक्ता व मोक्ष आदि के कारणरूप परिणामों से शून्य है। शुद्ध निश्चय नय बन्ध मोक्ष से अतीत शुद्ध जीव को विषय करता है।
पर्याय ही जिसका प्रयोजन है वह पर्यायार्थिक नय कहलाता है। द्रव्य - पर्यायात्मक वस्तु में से जो केवल पर्याय का ही मुख्य रूप से ज्ञान कराता है, अनुभव कराता है, कथन करता है, उसको पर्यायार्थिक नय कहते हैं।
पर्याग का अर्थ विशेष अपदाद और व्यावृत्ति (भेद) है। विशेष वा भेद का कथन करने वाला पर्यायार्थिक नय कहलाता है।
इस पर्यायार्थिक नय के अनेक भेद हैं तथापि मुख्य रूप से छह भेद हैं। छह भेदों का कथन इस प्रकार है -
(१) अनादि नित्य पर्यायार्थिक नय, (२) सादिनित्य पर्यायार्थिक नय, (३) स्वभाव नित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक नय, (४) स्वभाव अनित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक नय, (५) कर्मोपाधि निरपेक्ष स्वभाव अनित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नय और (६) कर्मोपाधि सापेक्ष स्वभाव अनित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक नय।
(१) भरत आदि क्षेत्र, हिमवान आदि पर्वत, पद्म आदि सरोवर, सुदर्शन आदि मेरु, लवण व कालोद आदि समुद्र, इनको मध्य रूप या केन्द्ररूप करके स्थित असंख्यात द्वीप-समुद्र, नरक पटल, भवनवासी व व्यन्तर देवों के विमान, चन्द्र व सूर्य मण्डल आदि ज्योतिषी देवों के विमान, सौधर्मकल्प आदि स्वर्गों के पटल, यथायोग्य स्थानों में परिणत अकृत्रिम चैत्य-चैत्यालय, मोक्षशिला, वृहद् वातक्लय तथा इन सबको आदि लेकर अन्य भी आश्चर्यरूप परिणत जो पद्गल की पर्याय तथा उनके साथ परिणत लोकरूप महास्कन्ध पर्याय जो त्रिकालस्थित रहते हुए अनादिनिधन है, इनको विषय करने वाला अर्थात् इनकी सत्ता को स्वीकार करने वाला अनादि नित्य पर्यायार्थिक नय है।
(२) (परमभाव ग्राहक) शुद्ध निश्चयनय को गौण करके, सम्पूर्ण कर्मों के क्षय से उत्पन्न तथा चरम शरीर के आकार रूप पर्याय से परिणत जो शुद्ध सिद्ध पर्याय है, उसको विषय करने वाला अर्थात् उसको सत् समझने वाला सादि नित्य पर्यायार्थिक नय है।
(३) पदार्थ में विद्यमान गुणों की अपेक्षा को मुख्य न करके उत्पाद व्यय ध्रौव्य के आधीनपने रूप से द्रव्य को विनाश व उत्पत्ति स्वरूप मानने वाला सत्तानिरपेक्ष या सत्तागौण उत्पाद व्यय ग्राहक स्वभाव अनित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक नय है।