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आराधनासमुच्चयम् -२२५
चार विदिशाओं में स्थित बिल श्रेणीबद्ध कहलाते हैं। दिशा और विदिशा के मध्य में स्थित इन्द्रक बिल है और पुष्प के समान बिखरे हुए बिलों को प्रकीर्णक कहते हैं।
इन्द्रक बिलों का विस्तार संख्यात योजन प्रमाण है। श्रेणीबद्ध बिल असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं और प्रकीर्णक कुछ संख्यात योजन और कुछ असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं। संख्यात योजन वाले बिलों में संख्यात नारकी रहते हैं तथा असंख्यात योजन वाले बिलों में असंख्यात नारकी रहते हैं। जो बिल संख्यात योजन विस्तार वाले हैं उन बिलों का परस्पर जघन्य अंतराल डेढ़ योजन और उत्कृष्ट अन्तराल तीन योजन प्रमाण है। असंख्यात योजन विस्तार वाले बिलों का परस्पर जघन्य अंतराल सात हजार योजन और उत्कृष्ट असंख्यात योजन है।
प्रथम नरक में इन्द्रक बिल १३ हैं, श्रेणीबद्ध चार हजार चार सौ बीस हैं। प्रकीर्णक उनतीस लाख, पिच्यानवे हजार पाँच सौ सड़सठ हैं, सारे मिलाकर तीस लाख बिल हैं।
दूसरे नरक में ५१ इन्द्रक बिल हैं, दो हजार छह सौ चौरासी श्रेणीबद्ध बिल हैं और चौबीस लाख, उन्यासी हजार तीन सौ पाँच (२४,७९,३०५) प्रकीर्णक बिल हैं, सारे बिल पच्चीस लाख हैं।
तीसरे नरक में नौ इन्द्रक बिल हैं, एक हजार चार सौ छिहत्तर श्रेणीबद्ध हैं और चौदह लाख अट्ठानवे हजार पाँच सौ पन्द्रह प्रकीर्णक हैं। सारे मिलाकर तीसरे नरक के १५ लाख बिल हैं।
चतुर्थ नरक में सात इन्द्रक बिल हैं, सात सौ श्रेणीबद्ध हैं और नौ लाख निन्यानवे हजार दो सौ तिरानवे प्रकीर्णक बिल हैं। सारे मिलाकर दश लाख बिल हैं।
पाँचवें नरक में पाँच नरक बिल हैं, दो सौ आठ श्रेणीबद्ध बिल हैं। दो लाख निन्यानवे हजार सात सौ पैंतीस प्रकीर्णक बिल हैं। सारे तीन लाख बिल हैं।
छठे नरक में तीन इन्द्रक बिल हैं, साठ श्रेणीबद्ध बिल हैं और निन्यानवे हजार नौ सौ बत्तीस प्रकीर्णक बिल हैं। इस नरक के सारे बिल ९९९९५ हैं।
सातवें नरक में प्रकीर्णक बिल नहीं हैं, चार श्रेणीबद्ध हैं, चारों दिशाओं में एक और मध्य में इन्द्रक बिल है, इस प्रकार इस नरक में पाँच बिल हैं। सारे बिल चौरासी लाख हैं।
यद्यपि केवली भगवान के ज्ञान में सारे बिलों के नाम अवस्थित हैं क्योंकि बिना नाम की कोई वस्तु नहीं है तथापि वचनों में सबके नाम कथन करने की शक्ति नहीं है, अतः जैन ग्रन्थों में उनचास इन्द्रक बिलों के नाम इस प्रकार हैं
१. सीमंतक, २. निरय, ३. रौरुक, ४, भ्रान्त, ५. उद्भ्रान्त, ६. संभ्रान्त, ७. असंभ्रान्त, ८. विभ्रांत, ९. तप्त, १०. त्रसित, ११. वक्रान्त, १२. अवक्रान्त और १३. विक्रान्त, ये १३ रत्नप्रभा नामक प्रथम नरक के इन्द्रक बिलों के नाम हैं।