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आराधनासमुच्चयम् - २२३
आकार वाला है। अधोलोक का आकार बेत्रासन है अर्थात् अर्ध मृदंग के आकार का है। यह अधोलोक दक्षिण उत्तर दिशा में सात राजू मोटा है, इसकी ऊँचाई भी सात राजू है। नीचे सात राजू चौड़ा और सात राजू की ऊँचाई पर एक राज चौड़ा है। अर्थात् पूर्व-पश्चिम में घटते-घटते अन्त में मध्यलोक के स्थान पर एक राजू शेष रह जाता है। मध्यलोक का आकार झल्लरी के समान है, अर्थात् खड़े किये हुए आधे मृदंग के ऊर्ध्व भाग के समान है। यह मध्यलोक मेरुतलभाग से उसकी चोटी पर्यन्त एक लाख योजन ऊँचा और एक राजू प्रमाण विस्तार से युक्त है।
___ सुमेरु पर्वत की चोटी से एक बाल मात्र अन्तर से ऊर्ध्वलोक प्रारंभ होकर लोक-शिखर पर्यन्त एक लाख योजन कम सात राजू प्रमाण ऊर्ध्वलोक है। उसमें भी लोकशिखर से २१ योजन ४२५ धनुष नीचे तक तो स्वर्ग है और उससे ऊपर लोकशिखर पर सिद्धलोक है।
तीन भागों में विभाजित लोक का यह आयाम दक्षिण और उत्तर दिशा में जगत् श्रेणी प्रमाण अर्थात् सात राजू है। पूर्व और पश्चिम भाग में भूमि और मुख का व्यास क्रमशः सात राजू, एक राजू, पाँच राजू
और एक राजू है अर्थात् लोक का आयाम सर्वत्र सात राजू है। परन्तु विस्तार क्रम से लोक के नीचे सात राजू, मध्यलोक में एक राजू, ब्रह्म स्वर्ग पर पाँच राजू और लोक के अन्त में एक राजू है। सम्पूर्ण लोक की ऊँचाई १४ राजू प्रमाण है। अर्ध मृदंगाकार अधोलोक की ऊँचाई भी सात राजू है और पूर्ण मृदंग प्रमाण ऊर्ध्व लोक की ऊँचाई भी सात राजू है।
तीन लोक में से अर्ध मृदंग आकार अधोलोक में रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमप्रभा और महातमप्रभा ये सात पृथिवियाँ एक-एक राजू के अन्तराल में स्थित हैं। इनका अपर नाम घम्मा, वंशा, मेघा, अंजना, अरिष्टा, मघवी और माधवी है।
मेरुपर्वत के नीचे वज्र वा वैडूर्य पटलों के बीच में चौकोर संस्थान रूप से अवस्थित आकाश के आठ प्रदेश लोक का मध्य है।
मध्यलोक के अधोभाग से प्रारंभ होकर पहला राजू शर्कराप्रभा पृथिवी के अधोभाग में समाप्त होता है। इससे दूसरा राजू प्रारंभ होता है और बालुकाप्रभा के अधोभाग में समाप्त होता है। इसी प्रकार तीसरा राजू पंकप्रभा के अधोभाग में, चौथा धूम - प्रभा के अधोभाग में, पाँचवाँ तमप्रभा के अधोभाग में, छठा महातम प्रभा के अधोभाग में और सातवाँ लोक के तल भाग में समाप्त होता है। इस प्रकार अधोलोक की सात राजू ऊंचाई का विभाजन है।
अधोलोक में सर्वप्रथम रत्नप्रभा पृथिवी है। उसके तीन भाग हैं, खरभाग, पंकभाग और अब्बहुलभाग । रत्नप्रभा के नीचे क्रमशः शर्कराप्रभा आदि छह पृथिवियाँ हैं।
सातों पृथिवियाँ ऊर्ध्व दिशा को छोड़कर शेष नौ दिशाओं में घनोदधिवातवलय से लगी हुई हैं, परन्तु आठवीं पृथिवी दशों - दिशाओं में घनोदधिवातवलय से लगी हुई हैं। उपर्युक्त पृथिवियाँ पूर्व और पश्चिम दिशा के अन्तराल में वेत्रासन के सदृश आकार वाली हैं तथा उत्तर और दक्षिण में समान रूप से दीर्घ एवं अनादिनिधन हैं।