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आराधनात्तनुधम् २१०
रत्नप्रभा भूमि के तीन भागों में से खरभाग सोलह हजार योजन मोटा, पंक भाग चौरासी हजार योजन मोटा और अब्बहुल भाग अस्सी हजार योजन मोटा है। इस प्रकार रत्नप्रभा भूमि एक लाख अस्सी हजार योजन मोटी है।
खर भाग १६ प्रस्तरों में विभाजित है। उसमें एक-एक प्रस्तर एक-एक हजार योजन मोटा है।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी के खर भाग में ऊपर नीचे एक-एक हजार योजन छोड़कर मध्य में १४ हजार योजन भूमि में सात प्रकार के व्यंतर और नव प्रकार के भवनवासी देव रहते हैं। असुरकुमार और व्यन्तरों के राक्षस ये दो जाति के देव पंक भाग में रहते हैं ।
अब्बहुल भाग अस्सी हजार योजन मोटा है। उसमें प्रथम नरक के नारकी रहते हैं ।
दूसरी शर्करा नामक पृथ्वी बत्तीस हजार योजन मोटी है। तीसरी बालूका भूमि अट्ठाईस हजार योजन मोटी है। चौथी पंक - प्रभा भूमि चौबीस हजार योजन मोटी है। पाँचवी धूमप्रभा बीस हजार योजन मोटी है। छठी तमप्रभा पृथ्वी सोलह हजार योजन मोटी है और सातवीं महातम भूमि आठ हजार योजन मोटी
है ।
ये सातों भूमियाँ उत्तरोत्तर नीचे-नीचे हैं, परन्तु परस्पर भिड़कर नहीं हैं, अपितु एक-दूसरी भूमि के बीच में एक-एक राजू प्रमाण अन्तर है। ये सातों भूमियाँ घनोदधि, घनवात, तनुवात और आकाश के आधार से स्थित हैं। अर्थात् प्रत्येक भूमि घनोदधि के आधार से स्थित है, घनोदधि घनवात के आधार स्थित है, घनवात तनुवात के आधार स्थित है, तनुवात आकाश के आधार स्थित है और आकाश अपने आधार से स्थित है।
प्रथम भूमि के तीसरे भाग अब्बहुल की और शेष छह भूमियों की जितनी जितनी मोटाई बतलाई है उसमें से ऊपर और नीचे एक एक हजार योजन भूमि को छोड़कर छहों भूमियों के मध्य भाग नरक है अर्थात् नीचे-नीचे सात नरक हैं। परन्तु सातवीं भूमि के ठीक मध्य भाग में नरक बिल है। रत्नप्रभा नामक प्रथम नरक में १३ पटल हैं और तीस लाख बिल हैं। शर्करा नामक दूसरे नरक में ११ पटल और २५ लाख बिल हैं। बालुकाप्रभा नामक तीसरे नरक में ९ पटल और १५ लाख बिल हैं। पंक नामक चौथे नरक में ७ पटल और १० लाख बिल हैं। धूम नामक पाँचवें नरक में ५ पटल और ३ लाख बिल हैं। तमप्रभा नामक छठे नरक में तीन पटल और पाँच कम एक लाख बिल हैं। महातमप्रभा नामक सातवें नरक में एक पटल और पाँच बिल हैं। सारे पटल उनचास और बिल चौरासी लाख हैं । प्रत्येक भूमि के पटल एक-एक हजार योजन अन्तराल से ऊपर नीचे स्थित हैं। जिस प्रकार पत्थर या मिट्टी के एक घर पर दूसरा घर अवस्थित है, उसी प्रकार ये पटल हैं। पटल और बिलों का आकार विविध प्रकार का है। कोई गोल है, कोई त्रिकोण है, कोई चतुष्कोण है और कोई अनिश्चित आकार वाले हैं। ये सर्व बिल वज्रमयी भीत्तियों से युक्त हैं।
इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक के भेद से ये बिल तीन प्रकार के हैं। पूर्वादि चार दिशाओं में और