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आराधनासमुन्वयम् २०८
समझाने के लिए, उनके व्यामोह को दूर करने के लिए स्याद्वादी महर्षियों ने अध्रुव भावना का कथन किया है। वे कहते हैं, हे आत्मन् ! तीन लोक में पुण्योदयजनित जितनी वस्तुएँ दृष्टिगोचर हो रही हैं वे सर्व वायु के झकोरों से आहत दीपक की शिखा के समान चंचल हैं, अनित्य हैं। ___इन्द्रादि देवों की अणिमा, महिमा, लधिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व, अप्रतिघात, अन्तर्धान और कामरूप इस प्रकार के अनेक भेदों से युक्त विक्रिया ऋद्धि आदि अष्ट गुणों और ऐश्वर्यों से युक्त सारी सम्पदा शरद् ऋतु के श्वेत बादल के समूह के समान क्षणभंगुर है।
चक्रवर्ती, नारायण, प्रतिनारायण, बलभद्र आदि मानवों की चौदहरत्न और नवनिधि से परिपूर्ण अनेक प्रकार की भोग-सम्पदा श्रेष्ठ हाथी के कर्ण के अग्रभाग के समान चंचल है, अस्थिर है।
___ अणु के बराबर शरीर बना लेना अणिमा ऋद्धि है। मेरु के बराबर शरीर बनाना महिमा, वायु से भी हलका लघु शरीर करने को लघिमा और वज्र से भी अधिक गुरुतायुक्त (भारी) शरीर करने को गरिमा ऋद्धि कहते हैं। भूमि पर स्थित रहकर अंगुली के अग्रभाग से सूर्य-चन्द्रादिक को, मेरु शिखरों को तथा अन्य वस्तुओं के प्राप्त करने को प्राप्टिकन्ति कहते हैं।
जिस ऋद्धि के प्रभाव से जल के समान पृथ्वी पर उन्मज्जन-निमज्जन क्रिया होती है और पृथ्वी के समान जल पर भी गमन होता है, वह प्राकाम्यऋद्धि है।
अथवा - अनेक प्रकार की क्रिया-गुण एवं द्रव्य के आधीन होने वाली, सेना आदि पदार्थों की अपने शरीर से भिन्न अथवा अभिन्न रूप बनाने की शक्ति प्राप्त होने को भी प्राकाम्य कहते हैं। भिन्न-भिन्न रचना करना पृथक् विक्रिया है और एक शरीर के ही अनेक रूप बनाना अपृथकू विक्रिया है। यह दोनों प्रकार की विक्रिया देवों के होती हैं। ये देवों के आठ गुण कहे जाते हैं। इन आठ गुणों से युक्त, जिनके बिना परिश्रम से प्राप्त सम्पदा है, वह भी शरद् ऋतु के श्वेतवर्ण वाले बादल के समान अस्थिर है, नाशवंत है।
__ चक्रवर्ती के नवनिधि और १४ रत्न होते हैं। १४ रत्नों में सात रत्न अजीव और सात सजीव होते हैं। अजीव सात रत्नों के नाम इस प्रकार हैं -
१. चक्र - आयुधशाला में चक्र की उत्पत्ति हो जाने पर चक्रवर्ती जिनेन्द्रदेव की पूजन करके दिग्विजय के लिए प्रयाण करता है, इसी के बल पर शत्रुओं का संहार करके षट्खण्ड पर विजय प्राप्त करता
हैं।
२. छत्र - यह १२ योजन लम्बा एवं इतना ही चौड़ा होता है। यह वर्षा से कटक (सेना) की रक्षा करता है।
३. खड्ग - इससे शत्रुओं का विनाश किया जाता है।
४. दण्ड - दण्डरत्न से सेनापति वैताढ्य पर्वत की खण्डप्रपात और तिमिस्रा नामक गुफा के पश्चिम द्वार एवं पूर्व द्वार को खोलता है तथा वृषभगिरि पर्वत पर दण्डरत्न द्वारा चक्रवर्ती अन्य चक्रवर्ती का