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आराधनासमुच्चयम् १५३
असंयम भाव सम्यग्दर्शन सहित भी होता है अर्थात् सम्यग्दृष्टि के भी होता है; मिथ्यादर्शन सहित मिथ्यादृष्टि के भी होता है, सम्यग्दर्शन से च्युत होकर मिथ्यात्व के सम्मुख होने वाले के भी होता है और मिथ्यात्व सम्यक्त्व प्रकृति सहित वाले के भी होता है अतः वह नाना परिणाम वाला होता है।
अन्वयार्थ
जीव की । प्रतीत्य
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है। तु और भृशं पूर्व प्रमाण । भवेत्
आदि के तीन चारित्रों के उत्कृष्ट एवं जघन्य काल का कथन
आद्येषु त्रिषु चरितेष्वपरः समयः परो भवेत्कालः । देशोनपूर्वकोटी प्रतीत्य भृशमेकजीवं तु ॥ ९८ ॥
आधेषु आदि के । त्रिषु तीन | चरितेषु चारित्रों में एकं एक जीवं - जघन्य । कालः - काल । समय: एक समय । भवेत् होता
प्रतीति से । अपर:
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• काल । देशोनपूर्वकोटी - कुछ कम एक कोटि
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अत्यन्त । परः - उत्कृष्ट । कालः होता है।
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अर्थ - सामायिक, छेदोपस्थापना और परिहारविशुद्धिसंयम का जघन्य काल एक जीव की अपेक्षा एक समय मात्र है।
यह जघन्य समय गुणस्थान परिवर्तन की अपेक्षा है, जैसे कोई जीव उपशम श्रेणी पर आरूढ़ होकर गिरते समय नवम गुणस्थान में आया और सामायिक, छेदोपस्थापना संयम वाला हुआ तथा एक समय तक सामायिक छेदोपस्थापना संयम में रहा और मर गया, अतः एक समय जघन्य काल है। इन संयमों का उत्कृष्टकाल एक जीव की अपेक्षा आठ वर्ष कम एक कोटी पूर्व है। मध्यम अनेक विकल्प हैं।
परिहारविशुद्धिसंयम का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल अड़तीस वर्ष घाट एक कोटी पूर्व है । परिहार- विशुद्धि संयम की प्राप्ति अड़तीस वर्ष पूर्व नहीं होती है क्योंकि तीस वर्ष तक जिसने गृहस्थावस्था में सुखपूर्वक इन्द्रियजन्य विषयों का अनुभव किया है तत्पश्चात् दैगम्बरी दीक्षा ग्रहण करके आठ वर्ष पर्यन्त तीर्थंकरों के चरण- सान्निध्य में प्रत्याख्यान पूर्व का अध्ययन किया है ऐसे महापुरुषों के परिहारविशुद्धिसंयम होता है। कर्मभूमि के मनुष्यों की उत्कृष्ट आयु एक कोटी पूर्व की होती है, अतः परिहारविशुद्धि का उत्कृष्ट काल अड़तीस वर्ष हीन एक कोटी पूर्व का होता है। मध्यम काल के अनेक भेद हैं अर्थात् अड़तीस वर्ष अन्तर्मुहूर्त से लेकर एक कोटी पूर्व के विकल्प तक मध्यम भेद होते हैं।
इस ग्रन्थ में परिहारविशुद्धिसंयम का जघन्य काल एक समय कहा है, वह मरण की अपेक्षा है क्योंकि छठे, सातवें गुणस्थान का जघन्य काल एक समय मरण की अपेक्षा है।
सूक्ष्म साम्पराय और यथाख्यान चारित्र के जघन्य, उत्कृष्ट काल का कथन
अन्तर्मुहूर्तसमयौ परावरौ सूक्ष्मसांपरायाख्ये । देशोनपूर्वकोटि: समयश्च विरागचारित्रे ॥ ९९ ॥
अन्वयार्थ - सूक्ष्मसाम्परायाख्ये सूक्ष्म साम्पराय नामक संयम का परावरौ उत्कृष्ट और
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