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आराधनासमुच्चयम् ११३
द्रव्यार्थिक नय के दश भेद हैं -
(१) कर्मोपाधि निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय - जैसे संसारी जीव सिद्ध के समान शुद्धात्मा हैं। कर्मों से बँधे हुए जीव को यह नय सिद्ध के समान शुद्ध बताता है, अतः यह कर्मोपाधि निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय है।
(२) उत्पाद और व्यय को गौण करके मुख्यरूप से जो केवल सत्ता को ग्रहण करता है, वह सत्ताग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक नय कहलाता है। इस नय की अपेक्षा सर्व पदार्थ उत्पाद - व्यय से रहित नित्य
हैं
(३) गुण-गुणी में, पर्याय-पर्यायी में भेद न करके अभिन्न रूप से एक स्वरूप से ग्रहण करता है, वह भेदकल्पनानिरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय है। इस नय की अपेक्षा धर्म, अधर्म, आकाश और जीव इन चारों बहुप्रदेशी द्रव्यों की अखण्डता होने के कारण एकप्रदेशपना है।
(४) कर्मजनित रागादि विभाव भावों को तथा औदयिक, औपशमिक, क्षायोपशमिक इन तीनों भावों को, इन भावों से उत्पन्न नर-नारकादि पर्यायों को जीव की कहना अर्थात् जीव नारकी है, तिर्यंच है, आदि रूप से कथन करने वाला कर्मोपाधि सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय है।
(५) द्रव्य एक समय में ही उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यात्मक है, ऐसा कथन करना उत्पादव्ययसापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय का विषय है।
(६) भेदकल्पनासापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा ज्ञान-दर्शन आदि आत्मा के गुण हैं तथा धर्म, अधर्म, आकाश व जीव ये चारों द्रव्य अनेकप्रदेशस्वभाव वाले हैं।
जो द्रव्य में गुण-गुणी भेद करके उनमें सम्बन्ध स्थापित करता है (जैसे जीव गुण व पर्याय वाला है अथवा जीव ज्ञानवान है) वह भेदकल्पना सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय है।
(७) अन्वयसापेक्ष द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा गुणपर्यायस्वरूप ही द्रव्य है और इसीलिए इस नय की अपेक्षा एक द्रव्य के भी अनेक स्वभावीपना है। (जैसे जीव ज्ञानस्वरूप है, जीव दर्शनस्वरूप है)
नि:शेष स्वभावों को जो पूर्ण द्रव्यों के साथ अन्वय या अनुस्यूत रूप से कहता है वह अन्वय सापेक्ष द्रव्यार्थिक नय है।
(८) स्वद्रव्यादिग्राहक द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल व स्वभाव इस चतुष्टय से ही द्रव्य का अस्तित्व है या इन चारों रूप ही द्रव्य का अस्तित्व स्वभाव है।
(९) परद्रव्यादिग्राहक द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाल व परभाव इस परचतुष्टय से द्रव्य का नास्तित्व है अर्थात् पर-चतुष्टय की अपेक्षा द्रव्य का नास्तित्व स्वभाव है।
(१०) परमभावग्राहकद्रव्यार्थिकनय इस नय की अपेक्षा आत्मा ज्ञान स्वभाव में स्थित है।