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मारामामुलम्
संभावना ही नहीं है। इसलिए आत्मा आदि नित्य पदार्थों का अस्तित्व ही नहीं है। कोकुल, काण्ठेवि, द्विरोमक, सुगत आदि प्रमुख अक्रियावादी हैं। कहा भी है - सभी संस्कार क्षणिक हैं और अस्थिर पदार्थों में क्रिया कैसे हो सकती है ? अत: इन पदार्थों की भूति अर्थात् उत्पत्ति या एक क्षण स्थायिनी सत्ता ही क्रिया है, इसी भूति को ही कारण या कारक कहते हैं। इस प्रकार अक्रियावादियों के मत में किसी भी पदार्थ में परिणमन या क्रिया नहीं होती।
अक्रियावादियों के चौरासी भेद इस प्रकार हैं -
पुण्य, पाप को छोड़कर जीवादि सात पदार्थों को स्वतः और परतः इन दो भेदों से गुणा करने पर १४ भेद होते हैं। इन १४ भेदों को काल, ईश्वर, आत्मा, नियति, स्वभाव और यदृच्छा इन छह से गुणा करने पर ८४ भेद हो जाते हैं।
___ अक्रियावादी आत्मा (जीव, अजीव) आदि पदार्थों के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते हैं। अतः इनमें नित्य और अनित्य ये दो विकल्प नहीं होते हैं। जितने यदृच्छावादी हैं वे सब अक्रियावादी हैं अत: क्रियावादियों की भेद गणना में यदृच्छा विकल्प को नहीं गिनाया है।
____ अक्रियावादियों का प्रथम विकल्प 'नास्ति जीवः स्वतः कालतः' अर्थात् काल की दृष्टि से जीव स्वतः नहीं है। इसका तात्पर्य यह है कि पदार्थों की सत्ता का निश्चय या तो उनके लक्षण (असाधारण स्वरूप) से होता है या फिर उनका कार्य देखकर अनुमान से निश्चय किया जाता है। परन्तु आत्मा आदि का कोई भी ऐसा असाधारण लक्षण नहीं है, जिससे इनकी सत्ता सिद्ध की जा सके। जगत् में पर्वत आदि स्थूल कार्यों को देखकर उनके उत्पादक सूक्ष्म परमाणुरूप जगत् के कारणों का अनुमान किया जाता है परन्तु जीव, अजीव, आस्रव आदि का कोई भी स्थूल कार्य हमारे दृष्टिगोचर नहीं होता है। इसलिए इनको अनुमान से सिद्ध करना भी संभव नहीं है। अत: आत्मा आदि पदार्थ नहीं हैं। इस प्रकार काल, ईश्वर, नियति आदि विकल्पों की अपेक्षा 'नास्ति' (अक्रियावाद) की मीमांसा कर लेनी चाहिए।
कालादि पाँच विकल्पों का स्वरूप तो क्रियावाद के प्रकरण में लिख चुके हैं।
यदृच्छा विकल्प इस प्रकार है - यदृच्छावादियों के मतानुसार यदृच्छा का अर्थ है - बिना संकल्प के ही अर्थ की प्राप्ति होना या जिसका विचार ही नहीं किया उसकी अतर्कित उपस्थिति होना। यदृच्छावादी पदार्थों में संतान की अपेक्षा निश्चित कार्यकारण भाव नहीं मानते हैं।
जिस प्रकार काकतालीय' न्याय से तालवृक्ष से गिरते हुए तालफल से उड़ते हुए कौए की टक्कर अकस्मात् बिना विचारे ही होती है, उसी प्रकार इस संसार में सभी प्राणियों को नाना प्रकार के सुख-दुःख अतर्कितोपस्थित बिना विचारे ही अपने आप हो जाते हैं। सुख-दुःख की उत्पत्ति में किसी का बुद्धिपूर्वक व्यापार नहीं होता।