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आराधनासमुच्चयम् ६३
क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन चारों गतियों में हो सकता है। क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन के साथ मरकर जीवात्मा मनुष्य और स्वर्गवासी देवों के सिवाय किसी स्थान में जन्म नहीं लेता है। अत: छासठ सागर स्वर्ग और मनुष्य पर्याय में पूर्ण करता है।
वेदक सम्यग्दर्शन मनुष्य और स्वर्गवासी देवों में निवृत्यपर्याप्त अवस्था में हो सकता है और किसी के निवृत्यपर्याप्त अवस्था में क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन नहीं होता। परन्तु जिस कर्मभूमिया मनुष्य ने क्षायिक सम्यक्त्व करना प्रारंभ किया और करण लब्धि के द्वारा अनन्तानुबंधी चार कषाय एवं मिथ्यात्व, सम्यक्त्वमिथ्यात्व का क्षय कर कृतकृत्य वेदक होता है, उस समय वह सम्यक्त्व प्रकृति का वेदन कर रहा है, अत: वेदक सम्यग्दृष्टि कहलाता है। उस समय मरण संभव है। वह मरकर प्रथम नरक में, भोगभूमिमनुष्य और तिर्यंचों में तथा स्वर्गवासी देवों में उत्पन्न हो सकता है। अतः निवृत्यपर्याप्त अवस्था में चारों गतियों में क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन पाया जा सकता है, परन्तु वास्तव में कर्मभूमिया मनुष्य और स्वर्गवासी देवों में ही निवृत्यपर्याप्त अवस्था में क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन होता है।
क्षायोपशामिक सम्यग्दृष्टि के उपशप श्रेणी में प्रवेश करने के पूर्व का कार्य
वेदकसम्यग्दृष्टि - र्वाञ्छन्नारोढुमुपशमश्रेणीम्। प्रथमकषायान्-करणैराचार्यमतेन विनियोज्य ।।२६ ॥ त्रिकरण्या दृङ् मोहत्रितयं प्रशमय्य याति चोपशमम्। सम्यक्त्वमुपशमश्रेणी-निभकाल प्रवेशाभ्याम्॥२७॥ उपशमकश्रेणिं तेनारुहा, ततोऽवतीर्य वा म्रियते ।
जननं लेश्यावशतो निवारितर्द्धिश्च समुपैति ॥२८॥ त्रिकम् । अन्वयार्थ - उपशमश्रेणी - उपशम श्रेणी में। आरोढं - आरोहण करने की। वाञ्छन् - वाञ्छा करने वाला । वेदक सम्यग्दृष्टि :- क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि । आचार्यमतेन - किन्हीं आचार्य के मत से। करण: - अध:करणादि तीन करण के द्वारा। प्रथमकषायान् - अनन्तानुबंधी कषायों का। विनियोज्य - विसंयोजन करने के पश्चात् । त्रिकरण्या - पुन: तीन करण के द्वारा । दृङ्मोहत्रितयं - तीसरे दर्शन मोह (सम्यक्त्व प्रकृति) का। प्रशमय्य - उपशमन करके । उपशमश्रेणीनिभकाल प्रवेशाभ्यां - उपशम श्रेणी के सदृश कालप्रवेश के द्वारा। उपशमं - उपशम। सम्यक्त्वं - सम्यग्दर्शन को। याति - प्राप्त होता है। तेन - 'उस अशम सम्यग्दर्शन के साथ । उपशमश्रेणी - उपशम श्रेणी को। आरुह्य - आरूढ़ होकर । च - और । तत: उसके बाद उपशम श्रेणी से। अवतीर्य - उतर कर | म्रियते - मर जाता है। च - और। निवारितर्द्धिः - जिनकी ऋद्धियाँ नष्ट हो गई हैं, ऐसा वह उपशम श्रेणी वाला जीव। लेश्यावशतः - लेश्या के वश से। जननं - जन्म को। समुपैति - प्राप्त होता है।
भावार्थ - क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि श्रेणी पर आरूढ़ नहीं हो सकता “क्योंकि चल, मल, अगाद