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आराधनासमुच्चयम् १३
वीर्यानुवाद पूर्व - जीवादि पदार्थों के वीर्य (शक्ति सामर्थ्य) का अनुवाद (कथन) जिसमें होता है, वह वीर्यानुवाद है। यह आत्मवीर्य, परवीर्य, उभयवीर्य, कालवीर्य, तपोवीर्य, गुणवीर्य, पर्यायवीर्य आदि अनेक प्रकार के वीर्य का वर्णन करता है। इसमें आठ वस्तु, एक सौ साठ प्राभृत और सत्तर लाख पद हैं।
अस्तिनास्तिप्रवाट पर्व - कथंचिन् अस्ति और कथचित् नास्ति की प्रमुखता से जिसमें प्रवाद (कथन) है वह अस्ति-नास्ति प्रवाद पूर्व कहलाता है। इसमें अठारह वस्तु, तीन सौ साठ प्राभृत और साठ लाख पद हैं।
ज्ञानप्रवाद पूर्व - जो पूर्व मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्ययज्ञान, केवलज्ञान इन पाँच सम्यग्ज्ञानों का तथा कुमति, कुश्रुत, कुअवधि रूप तीन अज्ञानों का और इनके भेद-प्रभेदों का कथन करता है, उसको ज्ञानप्रवाद कहते हैं। इस प्रवाद में १२ वस्तु, दो सौ चालीस प्राभृत और एक कम एक करोड़ पद हैं।
सत्यप्रवाद पूर्व - जिसमें वचनगुप्ति, आठ प्रकार के शब्दोच्चारण के स्थान, पाँच प्रयत्न, वाक्संस्कार, वचन प्रयोग", १२ प्रकार की भाषा, अनेक प्रकार के असत्य, दस प्रकार के सत्य आदि का वर्णन किया गया है, वह सत्यप्रवाद है। इसमें १२ वस्तु, दो सौ चालीस प्राभृत और एक करोड़ छह
आत्मप्रवाद पूर्व - आत्मा कर्ता है, भोक्ता है, वक्ता है, पुद्गल है, वेत्ता है, विष्णु है, स्वयंभू है, शरीरी है, मानव है, सक्त है, जन्तु है, मानी है, भावी है, योगी है, संकुचित है, असंकुचित है, क्षेत्रज्ञ है, अन्तरात्मा है, इत्यादि रूप से आत्मा का कथन जिसमें किया गया है वह आत्मप्रवाद है। इसके छब्बीस करोड़ पद हैं और १६ वस्तुगत तीन सौ बीस प्राभृत हैं।
कर्मप्रवाद पूर्व - ज्ञानावरणादि आठ मूल कर्म प्रकृति, १४८ उत्तर कर्म प्रकृति है तथा जीवों के परिणामों की भिन्नता या फलदान शक्ति की अपेक्षा असंख्यात लोकप्रमाण भेद वाले कर्मों का बंध, उदय, उदीरणा, सत्ता, उत्कर्षण, अपकर्षण, संक्रमण, उपशम, निधत्ति, निकाचित आदि अनेक अवस्थाओं का
१. असत्य नहीं बोलना व मौन धारण करना। २. शिर, कण्ठ, हृदय, जिह्वामूल, दाँत, नासिका, तालु और ओठ ये शब्दोच्चार के आठ स्थान हैं। इनको ही वासंस्कार
कारण कहते हैं। ३. स्पष्ट, किंचित् स्पष्ट, विवृत, अविवृत और संविवृत ये पाँच शब्दोच्चारण के प्रयत्न हैं। ४. व्याकरण की पद्धति से शब्दों का शुद्ध उच्चारण करना। ५. वचन उच्चारण करते समय कौन से शुभाशुभ वचों का वहाँ प्रयोग करना चाहिए सो वचनप्रयोग है। ६, अनिष्ट कथन, कलह वचन, पैशून्य वचन, असंयत प्रलाप, रतिवाक्, अरतिवाक्, उपधिवाक् निकृतिवाक्, अप्रणतिवाक्,
मोषवाक्, सम्यग्दर्शनवाक्, मिथ्यादर्शनवाक् । ७. जनपद सत्य, संवृति सत्य, स्थापना सत्य, नाम सत्य, रूप सत्य, संभावना सत्य, भाव सत्य, प्रतीति (आपेक्षिक) सत्य,
व्यवहार सत्य, उपमा सत्य।