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आराधनासमुच्चयम् *८०
मतिज्ञान का लक्षण और उसके भेद इन्द्रियमनोभिरभिमुखनियमितरूपेण वस्तुविज्ञानम् । भवति मतिज्ञानं तत् षट् त्रिंशत् त्रिशतभेदयुतम् ।।५५।। इन्द्रियमनसां षण्णां प्रत्येकमवग्रहादयो भेदाः॥ चत्वारस्तत्राद्यो द्विविधोऽर्थव्यञ्जनविकल्पात् ॥५६॥ चक्षुर्मनसोर्नास्ति व्यञ्जनभेदः पृथक् पृथक् तेषाम् । बहुबहुविधादिभेदाद् द्वादश निर्दर्शितास्तज्जैः॥५७॥ अथवा द्वित्रिचतुः पञ्चादिविकल्पैर्विकल्प्यमानं तत् ।
संख्यातासंख्यातप्रभेदसंघातमाप्नोति ॥५८॥ अन्वयार्थ - इन्द्रियमनोभिः - इन्द्रिय और मन के द्वारा। अभिमुखनियमितरूपेण - अभिमुख नियमित रूप से। वस्तुविज्ञान - वस्तु का विज्ञान । भवति - होता है। तत् - वह । षट्त्रिंशत् - छत्तीस। त्रिशतभेदयुतं - तीन सौ भेदों से युक्त । मतिज्ञानं - मतिज्ञान । भवति - होता है। षण्णां - छहों।' इन्द्रियमनसां - इन्द्रिय और मन के। प्रत्येकं - प्रत्येक के। अवग्रहाद्याः - अवग्रहादि । चत्वारः - वार। भेदाः - भेद । तन्त्र - उन चारों में। आद्यः - आदि (अवग्रह)। अर्थव्यंजन-विकल्पात् - अर्थ और व्यञ्जन के विकल्प से। द्विविधः - दो प्रकार का है। चक्षुर्मनसो: - चक्षु और मन के द्वारा । व्यञ्जनभेदः - व्यञ्जनावग्रह । नास्ति - नहीं है। तज्ज्ञैः - श्रुतज्ञान को जानने वाले महापुरुषों ने। तेषां - उन अवग्रह आदि के। पृथक् पृथक् - पृथक् पृथक् । बहुबहुविधादिभेदात् - बहुबहुविध आदि के भेद से। द्वादश - बारह प्रकार का । निर्दर्शिता: - कहा है। अथवा - अथवा। द्वित्रिचतुपंचादिविकल्पैः - दो, तीन, चार, पाँच आदि विकल्पों के द्वारा। विकल्प्यमानं - विकल्प्यमान। तत् - वह मतिज्ञान | संख्यातासंख्यातप्रभेदसंघातं - संख्यात एवं असंख्यात भेदों के समूह को। आप्नोति - प्राप्त होता है।
__ अर्थ - मतिज्ञानावरण का क्षयोपशम होने पर इन्द्रिय और मन के अवलम्बन से शब्द, रस, स्पर्श, गन्ध आदि विषयों में अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा रूप ज्ञान होता है, वह मतिज्ञान है। उसके तीन सौ छत्तीस भेद हैं।
ज्ञान के द्वारा जानने योग्य पदार्थ एक, एकविध, बहु, बहुविध, क्षिप्र, अक्षिप्र, निसृत, अनिसृत, उक्त, अनुक्त, ध्रुव और अध्रुव ये १२ प्रकार के हैं। उनको जानने वाला ज्ञान भी १२ प्रकार का है।
इन १२ प्रकार के पदार्थों को ग्रहण करने के लिए अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा रूप मतिज्ञान के चार भेद हैं।
विषय (पदार्थ) विषयी (इन्द्रियों) का सन्निपात होने पर वस्तु मात्र का सामान्य आलोचन रूप दर्शन होता है।