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आराधनासमुच्चयम् ५३
(३) तीसरा विकल्प आत्मवादियों का है। आत्मवादी "इस समस्त जगत् को पुरुष रूप ही मानते हैं।" इनके मत से जगत् पुरुष (ब्रह्मरूप) है, अद्वैत है। उक्तं च -
एक एव हि भूतात्मा, भूते-भूते व्यवस्थितः।
एकथा बहुधा चैव दृश्यते जलचन्द्रवत् ।। एक ही भूतात्मा सर्वत्र व्यवस्थित है। एक ही आत्मा जल में चन्द्रमा के समान पृथक्-पृथक् दृष्टिगोचर होता है।
(४) चतुर्थ विकल्प नियतिवादियों की दृष्टि है। नियतिवादियों का कथन है कि जीव स्वत: अस्तिरूप है, नित्य है, परन्तु उसका सारा कार्य-परिणमन नियत है।
जिसे, जिस समय, जिससे, जिस रूप में होना है, वह उससे, उसी समय, उस रूप में उत्पन्न होता है। इस प्रकार अबाधित प्रमाण से प्रसिद्ध इस नियति के स्वरूप को कौन बाधा दे सकता है, यह सर्वतः निर्बाध है।
(५) पाँचवाँ विकल्प स्वभाववादियों की अपेक्षा से है। स्वभाववादियों का कहना है कि जीव स्वतः अस्ति है, नित्य है, परन्तु सारी प्रवृत्तियाँ स्वभाव से ही कर रहा है। इसमें किसी की इच्छा का या प्रयत्न का कोई हस्तक्षेप नहीं है। काँटे, तीक्ष्णपना, पक्षियों में विचित्र स्वभाव, मधुर कूजन आदि स्वभाव से ही हैं। प्रत्येक वस्तु के कार्य का स्वभाव से अन्वय-व्यतिरेक है। इसलिए सभी कार्य स्वभावकृत हैं।
इस प्रकार 'स्वतः' जीव पद के काल, नियति आदि पाँच विकल्प होते हैं। इसी प्रकार 'परत;' पद के साथ भी पाँच विकल्प होते हैं। आत्मा अस्ति, नित्य है, परन्तु पर से व्यावृत्त है अर्थात् जीवादि सभी पदार्थों के स्वरूप का निर्णय परपदार्थों की व्यावृत्ति से ही होता है।
___ इस प्रकार जीव, अस्ति, नित्य, परतः के साथ काल, ईश्वर, आत्मा, नियति और स्वभाव रूप पाँच भेद करने चाहिए।
जीव अस्ति स्वत: अनित्य पद के साथ पाँच भेद तथा परत; अनित्य के साथ पाँच भेद करने पर जीव के साथ २० भेद होते हैं।
इसी प्रकार अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, पुण्य, पाप और मोक्ष के भी २०-२० भेद करने पर क्रियावादी के १८० भेद होते हैं। यह क्रियावाद नामक मिथ्यात्व है। क्योंकि अस्तित्व का एकान्त पक्ष
अक्रियावादी के चौरासी भेद हैं। अक्रिया का अर्थ है, अस्तित्व का सर्वथा उच्छेद । अर्थात् सभी पदार्थ क्षणिक हैं। किसी भी क्षणिक पदार्थ की दूसरे क्षण तक सत्ता नहीं रहती, अत: उसमें क्रिया की