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आराधनासमुच्चयम् ४०
इस प्रकार अध:प्रवृत्तकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण रूप करण लब्धि भव्य के ही होती है। इस करण लब्धि के अनन्तर सम्यग्दर्शन अवश्य होता है। अत: करणलब्धि ही साक्षात् सम्यग्दर्शन की कारण है।
पाँच लब्धियों में यही लब्धि वास्तव में सार्थक नाम को धारण करने वाली है, क्योंकि 'लब्धि' का अर्थ है - प्राप्ति। जो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक् चारित्र के साथ जीव का समागम कराती है, उसको लब्धि कहते हैं।
यह करणलब्धि वाला भव्य जीव ऐसे परिणाम रूपी खड्ग के द्वारा मिथ्यात्वादि कर्मशत्रुओं को नष्ट करके सम्यग्दर्शन को प्राप्त कर लेता है। उसके बाद उपशम सम्यग्दर्शन को प्राप्त कर मिथ्यात्व के मिथ्यात्व, सम्यक् मिथ्यात्व और सम्यक्त्व रूप तीन टुकड़े करता है।
जिनागम में अध्यात्मभाषा और आगमभाषा के भेद से दो प्रकार से कथन है।
आगमभाषा में जिन पाँच लब्धियों वा करणलब्धि को सम्यग्दर्शन का कारण कहा है उसी को अध्यात्म भाषा में निज शुद्धात्मा के सम्मुख परिणाम कहा गया है। यही सम्यग्दर्शन का कारण है।
आगमभाषा में पाँच लब्धियों से और अध्यात्मभाषा में निज शुद्धात्मा के सम्मुख परिणाम नामक निर्मल भावना रूपी खड्ग से प्रयत्न करके कर्मशत्रु को नष्ट करता है। (द्र. सं. टीका ३८)
आगमभाषा में दर्शनमोहनीय तथा चारित्रमोहनीय के क्षयोपशम से और अध्यात्म भाषा में निज शुद्धात्मा के सम्मुख परिणाम तथा काल आदि लब्धि विशेष से मिथ्यात्व नष्ट होना कहा जाता है। (पंचास्तिकाय)
प्रषचनसार में जयसेन आचार्य ने लिखा है कि आगम भाषा में अधःकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण परिणामों के द्वारा दर्शनमोह का उपशमन करता है और क्षायिकसम्यग्दर्शन के सम्मुख हुआ प्राणी दर्शनमोह का क्षय करता है।
अध्यात्म भाषा में द्रव्य, गुण, पर्याय के द्वारा अर्हन्त को जानकर उसके बल से स्वकीय शुद्धात्मा की भावना के सम्मुख होकर सविकल्प स्वसंवेदन परिणाम के द्वारा अर्हन्तस्वरूप को अपने में जोड़ता है अर्थात् में भी अर्हन्त के समान हूँ, अभेदनय से मुझमें और अर्हन्त में कोई अन्तर नहीं है, ऐसी भावना करने वाले के दर्शनमोह का उपशमन वा क्षय होता है। अर्थात् आगम भाषा में पाँच लब्धियों में करण लब्धि सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति में मुख्य कारण है और अध्यात्म भाषा में द्रव्य गुण पर्याय से अरिहंत को जानकर . स्वकीय आत्मस्वरूप के वेदन करने के सम्मुख होता है, तब दर्शनमोह का उपशम होता है।
द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव रूप सामग्री को प्राप्त करके दर्शन मोह का उपशमन करता है। इनमें