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आराधनासमुच्चयम् ०४३
इस कथन से आचार्यदेव ने सूचित किया है कि तीन करण की शुद्धि करके दर्शनमोह के तीन टुकड़े करके अनन्तर सम्यग्दर्शन उत्पन्न करता है।
गोम्मटसार में सम्यग्दर्शन रूपी यंत्र के द्वारा मिथ्यात्व के तीन विभाग करता है, ऐसा लिखा है।
धवला की छठी पुस्तक में लिखा है कि 'अन्तरकरण करके' ऐसा कहने पर काण्डघात के बिना मिथ्यात्व कर्म के अनुभाग का घाट कके और रमको सरावला प्रकृति और सम्यक् मिथ्यात्व प्रकृति के अनुभाग रूप आकार से परिणमाकर प्रथमोपशम सम्यक्त्व के प्राप्त होने के प्रथम समय में ही मिथ्यात्व रूप एक कर्म के तीन कर्मांश अर्थात् तीन भेद या खण्ड करता है। (धवल ६/१, ९-८, ७/२३५)
प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन के उत्पादक दो प्रकार के मिथ्यादृष्टि हैं - सादि और अनादि। अनादि मिथ्यादृष्टि जीव को सर्वोपशमना से सम्यग्दर्शन प्राप्त हैं।'
जिसने पूर्व में सम्यग्दर्शन को प्राप्त कर छोड़ दिया है, वह सादि मिथ्यावृष्टि है। जिस सादि मिथ्यादृष्टि के मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्व प्रकृति और चार अनन्तानुबंधी इन सात प्रकृतियों का सत्त्व है, उसके देशोपशमना से (सम्यक्त्व प्रकृति रूप देशघाती) प्रकृति के उदय को देशोपशमना कहते हैं।) सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है।
जो सम्यगमिथ्यात्व और सम्यक्त्व प्रकृति इन दोनों प्रकृतियों की उद्वेलना कर पाँच प्रकृति की सत्ता वाला है अर्थात् जिसके मोहनीय कर्म की २६ प्रकृति का सत्त्व है, ऐसा सादि मिथ्यादृष्टि चार अनन्तानुबंधी
और मिथ्यात्व इन पाँच प्रकृतियों के प्रशस्त उपशम या सर्वोपशमविधान के द्वारा युगपत् पाँचों प्रकृतियों को उपशमाकर अन्तर्मुहूर्त काल पर्यन्त उपशम सम्यग्दर्शन को प्राप्त करता है।
उपशम सम्यग्दृष्टि जीव के दर्शनमोहनीय कर्म अन्तर्मुहूर्त काल पर्यन्त सर्वोपशम से उपशांत रहता है। इसके पश्चात् नियम से उसके मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्वप्रकृति इन तीनों प्रकृतियों में किसी एक प्रकृति का उदय हो जाता है।
अनादि मिथ्यादृष्टि ने प्रथम बार उपशम सम्यग्दर्शन प्राप्त किया है। उसके नियम से मिथ्यात्व कर्म उदय में आता है और वह नियम से मिथ्यात्व गुणस्थान को प्राप्त करता है, परन्तु जिस सादि मिथ्यादृष्टि ने उपशम सम्यग्दर्शन प्राप्त किया है, वह मिथ्यात्व प्रकृति के उदय से मिथ्यात्व में चला जाता है, सम्यक्मिथ्यात्व के उदय से सम्यक्त्व से च्युत होकर तीसरे गुणस्थान में भी जा सकता है और सम्यक्त्व प्रकृति के उदय से वेदक सम्यग्दृष्टि भी बन सकता है।
दर्शनमोह के तीनों कर्माश उपशान्त अवस्था में सर्व स्थिति विशेष के साथ उपशांत रहते हैं अर्थात्
१. मिथ्यात्व, सम्यमिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृति इन तीनों के उदयाभाव को सर्वोपशमन कहते हैं।