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आराधनासमुच्चयम् - ५०
मिथ्यादर्शन के भेद-प्रभेद द्वित्रिचतुः पंचादि-प्रभेदतस्तद्भवेदनेकविधम् ।
कुगतिगमनैकमूलं मिथ्यात्वं भवति जीवानाम् ॥२१॥ अन्वयार्थ - तत् - वह मिथ्यात्व। द्वित्रि चतुः पंचादि प्रभेदतः - दो, तीन, चार, पाँच आदि के भेद से। अनेकविधं - अनेक प्रकार का है। मिथ्यात्वं - यह मिथ्यादर्शन ही। जीवानां - जीवों के। कुगतिगमनैकमूलं - कुगतिगमन का एक मूल कारण। भवति - होता है।
भावार्थ - मिथ्या, वितथ, व्यलीक और असत्य ये एकार्थवाची हैं। दृष्टि का अर्थ दर्शन या श्रद्धान है। जिसके उदय से दृष्टि विपरीत होती है, जिससे जीव जिन उपदिष्ट प्रवचन का श्रद्धान नहीं करता है, प्रत्युत् अन्य से उपदिष्ट या अनुपदिष्ट पदार्थों के अयथार्थ स्वरूप का श्रद्धान करता है।
इस मिथ्यात्व के दो, तीन, चार, पाँच आदि अनेक भेद हैं।
सामान्यतः अतत्त्व श्रद्धानरूप मिथ्यादर्शन एक प्रकार का है। नास्तिभावरूप और विपरीतरूपग्रहण की अपेक्षा मिथ्यादर्शन दो प्रकार का है। जीवादि तत्त्वों का अस्तित्व ही स्वीकार नहीं करना नास्तिभाव रूप मिथ्यात्व है तथा वस्तु के स्वरूप से विपरीत बुद्धि होना विपरीत मिथ्यात्व है।
मूढ़ और स्वभाव निरपेक्ष के भेद से मिथ्यादर्शन दो प्रकार का है।
गृहीत और अगृहीत के भेद से दो प्रकार का है। दूसरों के उपदेश को सुनकर जीवादिकों के अस्तित्व में अथवा उनके धर्म में अश्रद्धा होती है, वा मिथ्या धर्म में श्रद्धा होती है वह गृहीत या अभिगृहीत कहलाता है। परोपदेश के बिना मिथ्यादर्शन कर्म के उदय से जीवादि पदार्थों का अश्रद्धानरूप भाव होता है, वह नैसर्गिक या अगृहीत मिथ्यादर्शन है।।
संशय, अभिगृहीत, अनभिगृहीत के भेद से मिथ्यादर्शन तीन प्रकार का है।
जिसमें तत्त्वों का निश्चय नहीं है ऐसे संशय ज्ञान के साथ सम्बन्ध रखने वाले श्रद्धान को संशय मिथ्यादर्शन कहते हैं। इसमें पदार्थों के स्वरूप का निश्चय नहीं होता तथा जीवादि तत्त्वों का स्वरूप ऐसा ही है, अन्य नहीं है ऐसी तत्त्वविषयक सच्ची श्रद्धा नहीं होती। अभिगृहीत (गृहीत), अनभिगृहीत (अगृहीत) इन दोनों का लक्षण पहले कहा है।
क्रियावादी, अक्रियावादी, विनयवादी और अज्ञानवादी के भेद से मिथ्यात्व चार प्रकार का है। एकान्त, विपरीत, विनय, संशय और अज्ञान के भेद से मिथ्यात्व पाँच प्रकार का है।
सारे पदार्थ नित्य ही हैं, अनित्य ही हैं, आदि धर्मधर्मी में एकान्त रूप से अभिप्राय रखना एकान्त मिथ्यादर्शन है। जैसे यह सर्व जगत् ब्रह्म स्वरूप है या सर्व पदार्थ नित्य हैं या अनित्य हैं। सत् ही है, असत्