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देते हैं, तब दिखता है। इन्द्रियाँ ऐसे ही अंतरमुख नहीं होती, इन्द्रियों को बाड़े में नहीं डाल सकते! 'ज्ञानी' ने तो खुद जिस पद को प्राप्त किया है, वही पद हमें प्राप्त करवाते हैं। 'ज्ञानी' मिल जाएँ तो मोक्ष मोक्ष माँग लेना चाहिए। संपूज्य दादाश्री के पास जो 'अक्रम विज्ञान' प्रकट हुआ है, वह भ्राँतिमार्ग से हटाकर मोक्षमार्ग पूर्ण करवा देता है, यानी कि यह पूर्णविराम मार्ग है, अल्पविराम मार्ग नहीं है। अक्रम विज्ञान तो कहता है कि मोक्ष प्राप्ति में यदि संसार बाधक होता, तब तो वह किसीको भी मोक्ष में जाने ही नहीं देता न? अक्रम विज्ञान द्वारा आज मोक्ष अत्यंत आसानी से प्राप्त हो सके ऐसा है इसके लिए अक्रम ज्ञानी के पास पहुँचकर जागृति में, 'परम विनय' और 'मैं कुछ भी नहीं जानता' वह भाव और किस प्रकार से 'इसे' प्राप्त कर लें, यह भाव ही उसकी प्राप्ति करवाती है। बाकी और कोई भी पात्रता इस काल में नहीं देखी जाती और वैसी कोई पात्रता होती भी नहीं। अक्रम ज्ञानी के पास पहुँच गए, वही पात्रता।
'ज्ञानीपुरुष', परम पूज्य दादाश्री खुद की भावना को छुपी हुई नहीं रख सके, जो उनके कारुण्यताभरे शब्दों से पता चलती है कि "मेरा 'आइडिया' ऐसा है कि पूरे जगत् में इस' विज्ञान की बात कोने-कोने तक पहुँचानी है और हर एक जगह पर शांति होनी ही चाहिए। मेरी भावना, मेरी इच्छा, जो कहो वह, मेरा यही है!"
-- डॉ. नीरूबहन अमीन
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