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अहिंसा तत्त्व दर्शन
(३) अनंगक्रीडा - अप्राकृतिक मैथुन करना ।
अपरिग्रह के संदर्भ में नैतिक निर्देश
धार्मिक गृहस्थ निम्न निर्दिष्ट आचरण न करे : (१) भूमि की मर्यादा का अतिक्रमण करना । (२) सोने-चाँदी की मर्यादा का अतिक्रमण करना ।
(३) धान्य की मर्यादा का अतिक्रमण करना ।
शेष व्रतों के अतिचारों में भी कुछ नैतिक निर्देश प्राप्त होते हैं। ऊंची, नीची और तिरछी दिशा में जाने की मर्यादा का अतिक्रमण करना दिग्वत के अतिचार हैं । भोगवादी, विस्तारवादी व निरंकुश साम्राज्यवादी मनोवृत्ति के नियंत्रण के लिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण है । हिंस्रक प्रदान - - दूसरों को शस्त्रास्त्र देना । संयुक्ताधिकरण - बिना प्रयोजन शस्त्रास्त्रों को जोड़कर रखना — अनर्थ-दण्ड के अतिचार हैं ।
शेष व्रतों में तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत कहलाते हैं ।
तीन गुणवत
१. अनर्थ - दण्ड - विरमण |
२. दिग्वत - मर्यादित दिशा से आगे जाकर हिंसादि करने की विरति । ३. उपभोग - परिभोग-परिमाण |
१३.
चार शिक्षाव्रत
१. सामायिक - एक मुहूर्त्त तक सावद्य प्रवृत्ति की विरति - आत्मोपासना । २. देशावकाशिक - हिंसा आदि की अमुक समय तक विशिष्ट विरति । ३. पौषधोपवास – एक दिन-रात तक सावद्य प्रवृत्ति की विरति । ४. अतिथि संविभाग - संयमी को निर्दोष भिक्षा दान |
यह आगार सामायिक धर्म है ।
महाव्रतों में सर्व हिंसा की विरति है, इसलिए उनमें अहिंसा का व्यापक रूप हो, इसमें विशेष बात नहीं । गृहस्थ के व्रतों में हिंसा की सर्वथा विरति नहीं है और यह हो भी नहीं सकती । फिर भी उनमें अहिंसा का जीवनव्यापी प्रयोग दिखाया गया है; खान-पान, रहन-सहन, भोग-उपभोग आदि प्रत्येक प्रवृत्ति में हिंसा को नियंत्रित करने की दिशा दी गई है ।
आगार सामायिक धर्म को पालने वाले गृहस्थ का जीवन अल्प - हिंसा और
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