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अहिंसा तत्त्व दर्शन
१५ जीवन की अशक्यता मानना वस्तुस्थिति है किन्तु अहिंसा के अनुरूप शब्द-रचना वही हो सकती है, जिसमें उसका समर्थन हो।
हिंसा की जो कमी है, वह जीवन की श्रेष्ठता है। हिंसा थोड़ी मात्रा में भी जो होती है, वह जीवन की श्रेष्ठता नहीं है। तात्पर्य यह है कि हिंसा का अल्पीकरण श्रेष्ठ है, अल्प-हिंसा श्रेष्ठ नहीं। वह जीवन की आवश्यकता है किन्तु उसका धर्म नहीं।
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