Book Title: Ahimsa Tattva Darshan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 226
________________ २१२ अहिंसा तत्त्व दर्शन और शोषक का वर्ग-भेद तभी मिट सकता है जब सत्ता शोषक के हाथ से लुढ़ककर शोषित के हाथ में आ जाए। यह भी परिवर्तन है, हृदय का नहीं किन्तु परिस्थिति का। हृदय का परिवर्तन व्यक्ति के अपने विवेक से होता है और स्थिति का परिवर्तन सत्ता से। सत्ता विवेक-शून्य होती है, उसमें परिवर्तन की मौलिकता को देखने की दृष्टि नहीं होती, इसलिए उसमें चलते-चलते विकार आ जाता है। राजतंत्र का इतिहास देखिए । वह किस रूप में चला और उसकी अन्त्येष्टि किस रूप में हुई। हृदयपरिवर्तन में सामूहिक स्थिति के परिवर्तन की अनिवार्यता नहीं है। किन्तु यह ए. दिशा है, जो सर्वव्यापी न होने पर भी सबको सही मार्ग दिखा सकती है। संस्कार-परिवर्तन से विचार-परिवर्तन, विचार-परिवर्तन से हृदय-परिवर्तन, हृदय-परिवर्तन से स्थिति का परिवर्तन होता है। यह क्रम अच्छाई और बुराई दोनों का है। शोषण के लिए हृदय में स्वार्थ चाहिए और उसे छोड़ने के लिए परभार्थ। अपनी सुख-सुविधाओं के लिए दूसरे की सुख-सुविधाओं को न लूटने की वृत्ति जाग जाए, वैसा संस्कार बन जाए, यही हृदय-परिवर्तन का सिद्धान्त है। वह विवाद से परे का वाद है, इसलिए इसकी सबको अपेक्षा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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