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अहिंसा तत्त्व दर्शन
वाचा, कर्मणा स्वयं नहीं मारता है, नहीं मरवाता है और मारने वाले को भला नहीं समझता-यह अभयदान है।' मोक्ष के लिए जो दया है, वह संयम है-हिंसा त्याग है। मनसा, वाचा, कर्मणा जीव मात्र की हिंसा न करना, न करवाना और न अनुमोदन करना- तीर्थंकरों की वाणी में आत्म-दया का यही स्वरूप है। इसी से संसार-समुद्र का पार आता है।
एक लौकिक दया भी है। उसके अनेक रूप हैं। वह संसार का उपकार है। उसे मुक्ति का मार्ग कहना एक प्रकार का व्यामोह है।६ ___ अहिंसा महाव्रत है, दया उसमें समाई हुई है। अहिंसा से अलग दया नहीं है। असंयम हिंसा है । हिंसा है, वह दया नहीं है। इसीलिए असंयम से सम्बन्ध रखने वाला जीवन, मृत्यु, पोषण, तृप्ति, पूर्ति, सहयोग आदि-आदि सब आत्म-दया नहीं है और इसलिए नहीं है कि इनमें हिंसा का स्थूल या सूक्ष्म सम्बन्ध रहता है, राग, द्वेष और मोह की पुट रहती है। __ संयममय जीवन, मृत्यु, पोषण, सहयोग आदि-आदि सब आत्म-दया है । इससे आत्म-शुद्धि होती है। मोह नहीं बढ़ता। आचार्य भिक्षु ने मोक्ष-दया, मोक्ष-दान, मोक्ष-उपकार तथा संसार-दया, संसार-दान और संसार-उपकार को परखने की एक ऐसी कसौटी रखी है, जिसमें खोट नहीं चलती। जैसे-ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप-ये चार मोक्ष के मार्ग हैं-आत्म-गुण हैं । इनकी साक्षात् वृद्धि करने वाले दया, दान और उपकार मोक्ष के साधक हैं और जिनसे ये न बढ़े, वैसे दया, दान और उपकार संसार के साधक हैं।'
ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप के बिना और कोई मुक्ति का उपाय नहीं है।" इनके सिवा बाकी के जितने उपकार हैं वे सब संसार के मार्ग हैं । १२ __अज्ञानी को कोई ज्ञानी बनाए, मिथ्या-दृष्टि को सम्यग्-दृष्टि, असंयमी को संयमी और अतपस्वी को तपस्वी-यह मोक्ष-धर्म या मोक्ष-उपकार है।
उमास्वाति के मोक्ष-शास्त्र का पहला सूत्र है—'सम्यग्ज्ञानदर्शनचारित्राणि मोक्षमार्गः'—यही तत्त्व बता रहा है और यही तत्त्व उत्तराध्ययन सूत्र में भगवान् महावीर ने बताया है
१. अनुकम्पा चौपाई ६।१, दोहा ३. वही, ६।३, दोहा ५. वही, ८.५ ७. वही, २।८, दोहा ६. वही, ६६५, दोहा ११. अनुकम्पा १११७-२२, दोहा
२. वही, ६।५, दोहा ४. वही, ८।४, दोहा ६. वही, ८१५ ८. वही, ६।३७-३६ १०. अनुकम्पा ढाल ११ १२. वही, १२१८
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