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अहिंसा तत्त्व दर्शन
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अहिंसक को चुप्पी साधनी चाहिए या प्रतिकार करना चाहिए।
अहिंसक के लिए मौन अच्छा साधन है। मौन साधने पर भी अन्याय नहीं टल सके तो उसके लिए एकमात्र प्रतिकार का रास्ता बाकी रहता है। हिंसात्मक प्रतिकार उसके लिए है नहीं। अहिंसात्मक तरीकों से वह चले । कष्ट आए उन्हें झेले, उनके सामने घुटने न टेके, झुके नहीं। अन्याय को प्रोत्साहन देने वाले तत्त्वों से सहयोग न करे। नम्रता को भी न छोड़े। तिरस्कार, उद्दण्डता, अवज्ञा-ये सब हिंसा हैं। अहिंसक किसी भी हालत में इन्हें नहीं चुन सकता । अहिंसा में दब्बूपन भी नहीं है, यह ध्यान रहे ?
अहिंसक झंझटों में क्यों फंसे, क्यों बोले, सब कुछ सहना ही उसका धर्म हैयह समझना भारी भूल है। क्षमा का अर्थ है-अपनी वृत्तियाँ उत्तेजित न हों। अन्याय में सहयोगी बने, यह क्षमा नहीं, कमजोरी है। क्षमा को वीरों का भूषण कहा गया है। वह कायरता का आवरण नहीं होना चाहिए । ___ अहिंसक के लिए अन्याय का प्रतिकार करने की बात दूसरी है। पहली बात है-वह स्वयं किसी के प्रति अन्याय न करे। जो दूसरों के प्रति अन्याय न करे, उसे ही अन्याय का प्रतिकार करने का हक है। इसलिए अहिंसक को चाहिए कि वह अपनी वृत्तियों को पूर्ण संयत करे। अन्याय का मतलब है-असंयम । असंयम व्यक्ति में रहे, वह भी बुरा है। अपना असंयम दूसरों पर प्रभाव डाले, यह तो और अधिक बुरा है । अहिंसा का मूल मंत्र है-संयम । भगवान् महावीर ने कहा है—“अहिंसक वह है जो हाथों का संयम करे, पैरों का संयम करे, वाणी का संयम करे और इन्द्रियों का संयम करे।'
संयम ही अहिंसा है। यह आत्म-निष्ठा से फलित होती है, इसीलिए उसका सिद्धान्त अध्यात्मवाद कहलाता है।
अध्यात्म के विचार-बिन्दु
१. आकांक्षा का अभाव अध्यात्म है। २. विचार का अभाव अध्यात्म है। ३. चारित्रिक कर्मण्यता अध्यात्म है। ४. अकर्मण्यता अलसता नहीं किन्तु निवृत्ति है। वह अध्यात्म है। एक
१. दशवैकालिक १०/१५
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