Book Title: Ahimsa Tattva Darshan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 214
________________ २०० अहिंसा तत्त्व दर्शन २. वृत्तिघ्नी, ३. सर्व सम्पत्करी। कार्य करने में समर्थ गृहस्थ भीख मांगता है-वह 'पौरुषघ्नी भिक्षा' है। यह समाज की निम्न-दशा का चिह्न है। अपंग व्यक्ति भीख मांगते हैं वह 'वृत्तिघ्नी भिक्षा' है। यह समाज-व्यवस्था का दोष है। 'सर्व संपत्करी भिक्षा' मुनि की होती है। वह न आलसी बनकर भीख मांगता है और न हीन बनकर। वह भिक्षा को कष्ट मानकर उसे सहता है। दूसरों के सामने हाथ पसारना कठोर मार्ग है, फिर भी मुनि के लिए इसके सिवा जीवन-निर्वाह का दूसरा कोई विकल्प नहीं होता। इसलिए उसे भिक्षा मांगनी होती है। गृहस्थ पूर्ण अहिंसा की भूमिका में नहीं होता, इसलिए उसे खान-पान के लिए भी हिंसा करनी पड़ती है। किन्तु जिसकी गति अहिंसा की ओर हो । उसमें खाद्य-विवेक अवश्य होना चाहिए। ____ अहिंसाव्रती को वैसी वस्तुएं नहीं खानी चाहिए, जिनसे आवश्यकता-पूर्ति कम हो और हिंसा अधिक। उसे स्वाद के लिए कुछ भी नहीं खाना चाहिए और मादक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। मांस-त्याग का आधार यही (खाद्य-विवेक) है। मांस मनुष्य का स्वाभाविक भोजन नहीं है। उसे खाने के पीछे स्वाद-वृत्ति, पौष्टिकता आदि भावनाएं होती हैं। मादकता, उत्तेजकता आदि उसके कुपरिणाम हैं। उससे वृत्तियों की तामसिकता बढ़ती है। मांस-भोजन के लिए बड़े जीवों की ही नहीं, उनके अतिरिक्त असंख्य छोटे जीवों की भी हिंसा होती है। ऐसे अनेक प्रसंग मिलकर मांसाहार त्याग के निमित्त बनते हैं। कोमल वृत्ति का जागरण होने पर व्यक्ति का विवेक किस प्रकार जाग उठता है वह निम्न घटना में पढ़िए : जब बीमार पड़े हुए बर्नार्डशा से डॉक्टरों ने कहा कि 'यदि आप गाय का मांस नहीं खाते हैं तो मर जाएंगे। तब बुद्धिमान् शा ने 'लन्दन डेली क्रोनिकल' नामक दैनिक पत्र में इस प्रकार अपने विचार व्यक्ति किए : ___ "मेरी स्थिति बड़ी गम्भीर है। मुझे जीवन-दान इस शर्त पर दिया जा रहा है कि मैं गाय या बछड़े का मांस खाऊँ। परन्तु मेरी श्रद्धा है कि प्राणी मात्र का शव भक्षण करने की अपेक्षा मृत्यु कहीं अधिक अच्छी है। मेरे जीवन की अन्तिम आकांक्षा मेरी अन्त्येष्टि क्रिया के लिए मार्गदर्शन करती है कि मेरी मृत्यु के पश्चात् भेड़ें, दूध देने वाले पशु तथा छोटी-छोटी मछलियाँ आदि सभी जीव मेरी मृत्यु का शोक न मनाकर अपने गलों पर शुभ्र वस्त्र बाँधकर ऐसे व्यक्ति के सम्मान में प्रसन्नतापूर्वक समारोह मनाएं, जिसने जीव-जन्तुओं का मांस खाने के स्थान पर मर जाना अधिक अच्छा समझा। मेरी अन्तिम यात्रा 'नोहाअर्क' के अपवाद को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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