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अहिंसा तत्त्व दर्शन है। इतिहास देखिए-बड़े-बड़े धनपति सुविधाओं का भोग करते-करते थक गए, तृप्ति नहीं मिली। उस अतृप्ति ने उन्हें तृप्ति-मार्ग ढूढने को प्रेरित किया और वे सुविधाओं को ठुकराकर कठोर पथ की ओर चल पड़े। त्याग की अकिंचनता ने उन्हें तृप्त बना दिया।
पदार्थ का अभाव सताता है, उसका भाव असन्तोष पैदा करता है । संयम स्वस्थ बनाता है। एक व्यक्ति मोटर दौड़ाए जाता है। गरीब को ईर्ष्या हो जाती है। उसे पैदल चलने में दीनता जान पड़ती है। वह एक बारगी तड़प उठता हैमोटर के लिए। एक संयमी ने भी उसे देखा किन्तु स्पर्धा नहीं बनी। उसने पादविहार का व्रत वाहन-यात्रा से अधिक महत्त्वपूर्ण मान स्वीकार किया है। तात्पर्य की भाषा में पढ़िए-तृप्ति अभाव में भी नहीं है, भाव में भी नहीं है, यह उनसे परे है। यह जो परे की वृत्ति है, वही हृदय-परिवर्तन है । समस्या यह है--गरीबों की धन में निष्ठा है। वे सुविधाओं को ही सर्वस्व मान बैठे हैं। धन से परे भी सुख-शान्ति है-यह भी उनकी समझ से परे है। दूसरी ओर धनपति पूंजी के दलदल में फंसे हुए हैं। उनकी शान्ति की चाह सुविधा के व्यामोह को चीरकर आगे नहीं बढ़ पाती। धोबी का कुत्ता भूख के मारे ढांचा-भर रह गया। मित्र कुत्तों ने उस धर को छोड़ स्वतन्त्र घूमने की सलाह दी । वह भी इसे महसूस करता था किन्तु वैसा हो नहीं सका। कुत्ते का नाम था 'सताबा'। धोबी की दोनों पत्नियां लड़तीं, तब एक-दूसरे को 'सताबे की बेर' कहकर पुकारती । गाली-गलौच में उनके पति होने का मोह वह नहीं छोड़ सकता। भूख ने उसके प्राण ले लिए।
चारों ओर ऐसा व्यामोह छा रहा है। जीवन के मूल्य स्वयं अनीति के पोषक बन रहे हैं। इस स्थिति में हृदय-परिवर्तन का प्रश्न बड़ा जटिल बन जाता है। इसे जटिल बनाने वाला दूसरा एक कारण और भी है। धनपतियों के शोषण ने गरीबों के दिल में एक प्रतिशोध की भावना उत्पन्न कर दी। अब वे केवल धनपतियों के ही विरोधी नहीं किन्तु उनकी दार्शनिक मान्यताओं के भी विरोधी बन गए। धनपति अध्यात्म और संतोष की बातें करते हैं, उन्हें वह ढकोसला लगता है। धर्म को भी वे शोषण का आलम्बन मान बैठे हैं । उनके मानने के पीछे एक तथ्य भी है। शोषण के द्वारा धन-संग्रह करते हैं, पीछे शुद्धि की भावना से थोड़ा धन खर्च कर वे धर्म-वीर बन जाते हैं। धर्म-आराधना की यह सीधी क्रिया उन्हें शोषण से दूर होने का अवसर ही नहीं देती। __ आज के विश्व-मानस का अध्ययन कीजिए, आपको लगेगा, राजनीतिकवाद जनता के मन पर छा गए। आत्मा, धर्म, ईश्वर, परलोक, सद्गति और पारमार्थिक शान्ति की चर्चा नहीं भाती। चरम लक्ष्य हो रहा है-इसी जीवन की अधितकम उन्नति । हृदय-परिवर्तन की अपेक्षा उन्हें है, जो आत्मशान्ति में विश्वास
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