Book Title: Ahimsa Tattva Darshan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 220
________________ अहिंसा तत्त्व दर्शन न्याय का दरवाजा इतना बड़ा नहीं है। आखिर यह सब अन्याय के द्वारा आता है। धन का संग्रह बढ़ता है। सुविधाएं बढ़ती हैं। ऐश्वर्य और यश भी बढ़ते हैं। स्थिति का चक्का घूमता है और उस पर विलास छा जाता है। अब न व्यापार की चिन्ता रहती है और न किसी दूसरी वस्तु की। वह बढ़ता है और इतना बढ़ता है कि आखिर सारी पूंजी को चट कर जाता है। यह गति समस्याओं और उनके समाधान की है। एक परिस्थिति में रोटी की समस्या है। दूसरी स्थिति में उसका समाधान मिलता है किन्तु वैयक्तिक स्वातन्त्र्य सीमा से अधिक बंध जाता है। नई स्थिति नई समस्या को जन्म न दे, यह लगभग असंभव-सा है। इसीलिए यह मानना होगा कि परिस्थिति का परिवर्तन नई परिस्थिति उत्पन्न कर सकता है किन्तु व्यक्ति को परिस्थिति के प्रभाव से मुक्त नहीं कर सकता। व्रत की परम्परा या हृदय-परिवर्तन में परिस्थिति-परिवर्तन से पहले उसे प्रभावित रहने की बात मुख्य है। आन्तरिक दुर्बलता मिटने पर बुरी परिस्थिति व्यक्ति की कसौटी भर बन सकती है, राक्षसी बन उसे डकार नहीं सकती। कुछ समस्याएं दैहिक होती हैं और कुछ मानसिक । कई बाहरी (पर-कृत) होती हैं और कुछ आन्तरिक (स्वकृत)। कुछ सामूहिक होती हैं और कुछ वैयक्तिक । दैहिक, बाहरी और सामूहिक समस्याओं को प्राथमिकता मिलती है। दैहिक समस्याएं न सुलझें तो देह टिके कैसे? बाहरी समस्याएं सहज बुद्धिगम्य हो जाती हैं- उनकी बुराई समझने में कोई तार्किक कठिनाई नहीं होती। सामूहिक समस्याएं विस्फोट कर सकती हैं। यही कारण है, मनुष्य की सारी चेष्टाएं इनके समाधान की ओर मुंह किए चल रही हैं। १. रोटी की समस्या, कपड़े और मकान की समस्या-ये एक कोटि की समस्याएं हैं। दूसरी कोटि की समस्याएं हैं-सौन्दर्य और विलास के साधनों की दुर्लभता। २. पड़ोसी स्वभाव का चिड़चिड़ा है। वह बिना मतलब बकवास करता है, कलह करता है, शान्ति से नहीं रहने देता। पति कुछ चाहता है और पत्नी कुछ। पिता-पुत्र के विचार मेल नहीं खाते। भाई-भाई की रुचि भिन्न है। ऐसी-ऐसी असंख्य उलझनें बाहर से आती हैं। ३. सामाजिक समस्याओं से भी कौन कैसे बच सकता है ? एक व्यक्ति दहेज देना नहीं चाहता किन्तु वह (दहेज) दिए बिना बेटी की गति नहीं। जहां कन्याओं की सुलभता है, वहां वे बिकती हैं और जहां कुमार सुलभ हैं, वहाँ वे बिकते हैं। कोई इन्हें बेचना न चाहे तो उनके कुमार भाव को वरदान मान बैठा रहे। रिश्वत देने की इच्छा नहीं। अनिच्छा का कारण रुपये जाते हैं, यह भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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