Book Title: Ahimsa Tattva Darshan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 207
________________ अहिंसा तत्त्व दर्शन १६३ २५. असंयम में बाह्य नियन्त्रण रहता है, इसलिए असंयमी दूसरों के सामने अन्याय करने में झिझकता है । २६. संयम में अपना नियन्त्रण होता है, इसलिए संयमी एकान्त में भी अन्याय नहीं करता। २७. मर्यादाहीन जीवन कहीं भी मान्य नहीं होता। स्व-मर्यादा नहीं होती, वहां दूसरे मर्यादा करते हैं। अध्यात्मवाद स्वयं मर्यादा है। हीन भावना न आए, इसलिए अध्यात्मवादी मानता है-मैं स्वयं परमात्मा हूं। २८. गर्व न आए, इसलिए अध्यात्मवादी मानता है-सब जीव समान हैं। सब जीव एक हैं। २६. परमात्मा बनने के लिए और मिथ्याभिमान से बचने के लिए अध्यात्मवाद का सूत्र है-संयम की साधना। ३०. अध्यात्मवादी वह होता है, जो दूसरों से न डरे, न दूसरों को डराए, न स्वयं दूसरे को ऊंच-नीच समझे और न दूसरों से स्वयं को ऊंच-नीच समझे, सबके प्रति समभाव बरते । निष्क्रिय अहिंसा का उपयोग ____ कई व्यक्ति निषेधात्मक अहिंसा को निठल्लों का हथियार बताते हैं । प्रवृत्तिशून्य जीवन उन्हें रुचता नहीं। सब कुछ करते हुए अहिंसा का पालन करना, यही उनके सिद्धान्त का सार है। यह सिद्धान्त न एकान्ततः सारहीन है और न एकान्ततः सारयुक्त । देह-दशा में पूर्ण निष्क्रियता हो नहीं सकती, यह वस्तुस्थिति है। किन्तु इससे प्रवृत्ति मात्र में अहिंसात्मकता नहीं आती । असंयमांश मिट जाता है, वही प्रवृत्ति अहिंसात्मक होती है । इसलिए प्रवृत्ति को शुद्ध करने के लिए निवृत्ति आवश्यक है। दया का भाव आता है, तब हिंसा की निवृत्ति होती है। हिंसा की निवृत्ति होती हैं, तब दया का विकास होता है। मुनि पूर्ण दयालु होता है, इसलिए वह सभी जीवों का त्रायी—पूर्ण अहिंसक होता है । गृहस्थ की शक्यता अधूरी होती है। वह सब प्रवृत्तियों के असंयमांशों को छोड़ने में क्षम नहीं होता, इसलिए वह पूर्ण दयालु नहीं होता। पूर्ण दयालु नहीं होता, इसलिए वह पूर्ण अहिंसक नहीं होता। युद्ध की प्रवृत्ति हिंसा है किन्तु उसमें भी निरपराध को न मारने, निहत्यों पर प्रहार न करने की वृत्ति जो हो, वह अहिंसा है। व्यापार करना अहिंसा नहीं किन्तु व्यापार करने में झूठा तोल-माप व शोषण न करने और न ठगने की वृत्ति अहिंसा है। सिद्धान्त की भाषा में कहा जा सकता है कि राग द्वेष से जितना बचाव किया जाए, वही अहिंसा है। राग-द्वेष प्रवृत्ति है और उनसे बचाव करना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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