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प्रेय और श्रेय का विवेक
अधिकांशतया विरोध शब्दों में रहता है, तत्त्व में नहीं। मोह को, मोह-अन्वित दया को प्रायः सभी आस्तिक दर्शन बन्धन मानते हैं। सांख्य सूत्र में असाधन के अनुचिन्तन को बन्धन माना गया है।' ___ यज्ञ याग आदि श्रौत कार्यों को भी बन्धन माना है। जैसे—कर्म करने से जीव बार-बार जन्म-मरण के चक्कर में पड़ता रहता है । बुद्धिहीन आदमी ही इन कर्मों की प्रशंसा करते हैं। इससे उन्हें बार-बार शरीर धारण करना पड़ता है।
इसका विस्तृत रूप है-महाभारत शान्तिपर्व में शुकदेव ने कर्म और ज्ञान का स्वरूप पूछते हुए व्यासजी से प्रश्न किया है-'पिताजी ! वेद में ज्ञानवान् के लिए कर्मों का त्याग और कर्मनिष्ठ के लिए कर्मों का करना, ये दो विधान हैं। किन्तु कर्म और ज्ञान-ये दोनों एक-दूसरे के प्रतिकूल हैं अतएव मैं जानना चाहता हूं कि कर्म करने से मनुष्य को क्या फल मिलता है और ज्ञान के प्रभाव से कौन-सी गति मिलती है ?'- व्यासजी ने उक्त प्रश्न का जवाब देते हुए कहा-'वेद में प्रवृत्ति और निवृत्ति दो प्रकार के कर्म बतलाए गए हैं । कर्म के प्रभाव से जीव संसार के बन्धन में बंधा रहता है। इसीलिए पारदर्शी संन्यासी लोग कर्म नहीं करते। कर्म करने से जीव फिर जन्म लेता है, किन्तु ज्ञान के प्रभाव से जीव नित्य अव्यक्त, अव्यय परमात्मा को प्राप्त हो जाता है । मूढ़ लोग कर्म की प्रशंसा करते हैं, इसी से उन्हें बार-बार शरीर धारण करना पड़ता है। जो मनुष्य सर्वश्रेष्ठ ज्ञान प्राप्त कर लेता है और जो कर्म को भली-भांति समझ लेता है, वह जैसे नदी के किनारे वाला मनुष्य कुओं का आदर नहीं करता, वैसे ही कर्म की प्रशंसा नहीं करता।'
१. सांख्य सूत्र : असाधनानुचिन्तनं बन्धाय भरतवत् । २. मुण्डक उपनिषद् ११२।७; महाभारत शान्तिपर्व, अध्याय २४१।१।१०
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