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अहिंसा तत्त्व दर्शन
के संगम में चलता है । वह हिंसा न छोड़ सके, यह उसकी दुर्बलता है । उसे अहिंसा क्यों माना जाए ? प्रत्येक कार्य की परख होनी चाहिए । संसार को संसार और मोक्ष को मोक्ष समझना चाहिए। सांसारिक कार्य में अनासक्ति रहने मात्र से वह मोक्ष का नहीं बन जाता। हां, अनासक्ति के रहते बन्धन तीव्र नहीं होता, फिर भी सूक्ष्म राग के रहते सूक्ष्म बन्धन अवश्य होगा । बन्धन और मोक्ष का मार्ग एक हो नहीं सकता । इस दशा में उन्हें एक मानने की भूल हमें नहीं करनी चाहिए ।
समाज और मोक्ष की अलग-अलग धारणाएं रहते हुए समाज का यथेष्ट विकास नहीं हो सकता- - ऐसा मानना भ्रमपूर्ण है । कारण यह है - सामाजिक प्राणी हिंसा और अहिंसा का विवेक रख सकता है किन्तु हिंसा को सर्वथा छोड़ नहीं सकता; समाज की प्रतिष्ठा, मर्यादा और विकास की उपेक्षा नहीं कर सकता । इतिहास के पन्ने उलटिए । अहिंसा पर विश्वास रखने वाले मौर्य और गुप्त सम्राटों का काल भारत का स्वर्ण युग कहा जाता है ।
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सामाजिक व्यक्ति समाज-विमुख नहीं हो सकता
दया दान विषयक विचार क्रांति दया दान के अति-रंजित रूप का परिणाम है। सामाजिक प्राणी राग की परिणति से मुक्ति नहीं पा सकता, यह ठीक है किन्तु उसे धर्म या मोक्ष का मार्ग समझ बैठे, यह भूल है । ऐसी भूल हुई, इसीलिए आचार्य भिक्षु को उस पर कठोर प्रहार करना पड़ा ।
वे समाज की मर्यादा को समझते थे । समाज में रहने वाला व्यक्ति समाज से विमुख बनकर रहे, यह उन्होंने नहीं बताया । उन्होंने बताया - 'समाज की आवश्यकताओं को, आपसी सहयोग, न्याय-वितरण, समान अधिकार, पौद्गलिक सुख-सम्पादन की विधियों को मोक्ष - मार्ग समझना भूल है ।' वे समाज-विरोधी संस्कार डालने नहीं चले, समाज का अभ्युदय निश्रेयस् के नाम पर साधा जा रहा था । उसे मिटाने चले थे । उसमें वे सफल हुए । आज का युग उनकी देन को बड़ी महत्त्वपूर्ण मानता है ।
सामाजिक दायित्व निभाने वाले नरक में जाते हैं - यह उनका प्रतिपाद्य नहीं था । उनका प्रतिपाद्य सिर्फ इतना ही था कि यह सब मोक्ष की साधना नहीं है । सम्यग् - दृष्टि व्यक्ति सामाजिक दायित्व को निभाता हुआ भी नरकगामी नहीं होता । नन्दन मणियारा ने पुष्करणी बनवाई, इसलिए वह मेढक बना - यह कैसे कहा जा सकता है ? छह खण्ड का राज्य करने वाले सार्वभौम चक्रवर्ती और रणचण्डी की खप्पर भरने वाला राजा और सैनिक उसी जन्म में संयमी बन मोक्ष जाते हैं । इस दशा में कुआं या पोखरणी बनाने मात्र से कोई नरक जाता है - यह कौन मर्मज्ञ कहेगा ? नन्दन मेढक इसलिए बना कि वह आरम्भ करता गया, उसमें मूच्छित
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