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अहिंसा तत्त्व दर्शन
स्याद्वादी अथवा समन्वयवादी के लिए यह उलझन नहीं होनी चाहिए। मेरा दृढ़ विश्वास है कि हम द्रष्टा की मीमांसन-भूमिका को समझ लें तो कम-से-कम उनके प्रति अन्याय करने से बच सकते हैं। __ आचार्य भिक्षु की अहिंसा के गर्भ में भगवान् महावीर के सिद्धान्तों का बल था। वे धर्म और दया-दान के नाम पर पोषित दुष्प्रवृत्तियों के कटु परिणामों को अनुभव कर सूक्ष्म चिन्तन में लगे, लगे रहे, समूचा जीवन उसी साधना में लगाया। अहिंसा, धर्म, दया और दान पर बड़े-बड़े मौलिक ग्रन्थ लिखे। उन्होंने देखा कि धर्म के असली स्वरूप को न समझ उसके बाहरी रंग-रूप पर मर मिटने वाले श्रद्धालुओं को तीखे बाणों के बिना जगाने का दूसरा कोई मार्ग नहीं है। उन्होंने 'अनुकम्पा' शीर्षक ग्रन्थ लिखा । उसके द्वारा ऐसे तीखे बाण छोड़े कि दया-दान का स्थितिपालक वर्ग हिल उठा। उनका क्रान्तिकारी सुधारक रूप विद्रोह का झण्डा लिए हुए था। वह तूफान के रूप में सामने आया। उन्होंने कहा-दया धर्म है, दान धर्म है, सेवा धर्म है, परन्तु ये अमर्यादित धर्म नहीं हैं। इनकी मर्यादा को समझो, अन्तर परख करो। धर्म-अधर्म दृष्टि-सापेक्ष है । एक सामाजिक व्यक्ति के लिए जो धर्म होता है, वह आत्म-साधक मुमुक्षु के लिए धर्म नहीं भी होता। समाज-संस्था और राज्य-संस्था की समूची कार्य-प्रणाली धर्म से अनुमोदित हो ही नहीं सकती। इसीलिए समाज-धर्म आत्म-धर्म से भिन्न है। समाज-धर्म का उद्देश्य जहां सामाजिक सुख-सुविधा है, वहां आत्म-धर्म का उद्देश्य है-शरीरमुक्ति । समाज-धर्म और आत्म-धर्म का एकीकरण करने में तम्बाकू और घी के सम्मिश्रण की-सी भूल है। समाज की भूमिका को विशुद्ध रखने के लिए उस पर आत्म-धर्म का नियन्त्रण आवश्यक है, किन्तु वह आत्म-धर्म ही है, यह गलत दृष्टिकोण है। सामाजिक सहयोग के स्थान पर अपने सामाजिक भाइयों को भिखारी और दया के पात्र बनाना सामाजिक अपराध भी है।
आचार्य भिक्ष का यह क्रान्ति-घोष सहा नहीं गया, लोगों को नया ही नहीं, अटपटा लगा। विरोध की बाढ़ आयी, फिर भी वे अपने पथ से हटे नहीं। उन्हें मृत्यु का भय नहीं था, पूजा-प्रतिष्ठा की कामना नहीं थी। जो सही लगा उसे अपनाया। यही उनके विषय में जयाचार्य की 'मरण धार शुद्ध मग गह्यो' वाली उक्ति चरितार्थ होती है।
सिंह-पुरुष आचार्य भिक्षु (जीवन-झांको)
___ अहिंसा आत्मा को पखारती है। सचाई उसका तेज बढ़ाती है। जहां ये नहीं, वहां व्यक्तित्व ही नहीं, धर्म तो दूर की बात। जन-कल्याण बाद में, पहले होना
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