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अहिंसा तत्त्व दर्शन है, उसे स्नेह कहते हैं ।' दर्शन और स्पर्शन स्नेह-उत्पत्ति के निमित्त बनते हैं-यह इससे स्पष्ट हो जाता है ।
प्रेम सम्बन्ध और आपसी सहयोग सामाजिक जीवन के आधार बिन्दु हैं । उन्हें तोड़ने का कोई प्रश्न ही नहीं होता। विवेचनीय वस्तु है, उनकी कोटि का निर्णय। वही इस त्रिपदी में किया गया है।
तत्त्व : दो रूप
प्रत्येक वस्तु के दो रूप होते हैं-अन्तरंग और बहिरंग, व्यावहारिक और पारमार्थिक या लौकिक और लोकोत्तर । वैदिक साहित्य में इन्हें अपर और पर तथा जैन-साहित्य में द्रव्य और भाव भी कहा जाता है । मुण्डक उपनिषद्(१/१५) में दो प्रकार की विद्याएं बताई हैं-अपरा और परा । आवश्यक सूत्र (२ लोगस्स वृत्ति) में समाधि के दो रूप बताए हैं-द्रव्य-समाधि और भाव-समाधि । आचार्य भिक्षु ने 'द्रव्य-लाभ' और 'भाव-लाभ', 'द्रव्य-दया' और 'भाव-दया', 'द्रव्य-साता' और 'भाव-साता' इनके दो-दो रूप बताए हैं।
आचार्य भिक्षु दया-दान के विरोधी नहीं थे। वे लौकिक-धर्म को मुक्ति का धर्म मानने के लिए कभी तैयार नहीं थे, यह उनकी रचनाओं से स्पष्ट प्रतीत होता है। 'जो व्यक्ति लौकिक कार्यों को मुक्ति-धर्म मानते हैं, उनके लिए सूत्र (शास्त्र) शस्त्र की भांति परिणत हो रहे हैं। वे हिंसा का समर्थन कर कम बांध रहे हैं।' उनकी इस वाणी में 'मुगती रो धर्मों' जो है, वही मतभेद या विरोध का केन्द्र-बिन्दु है। लौकिक कार्यों को लोक-धर्म माना जाता तो उन्हें विरोध क्यों होता? लोक-विधि के लिए लौकिक कर्तव्य, व्यवहार, सहयोग आवश्यक जो होता है, उसका-विरोध करने वे क्यों चलते ? उनके समूचे विचार का थोड़े में सार यह है कि लोक-धर्म को मोक्ष-धर्म मत समझो। जो वस्तुएं मोक्ष के लिए हैं, उन्हें मोक्ष के लिए समझो और जो संसार के लिए हैं, उन्हें संसार के लिए । संसार और मोक्ष का मार्ग एक नहीं है । संसार का मार्ग हिंसा का मार्ग है, मोक्ष का मार्ग अहिंसा का। इसीलिए उन्होंने लिखा है :
'संसार नै मुक्ति रा मार्ग न्यारा, ते कठे खावै मेलो।'
संसार-मार्ग और मोक्ष-मार्ग की द्विविधा बतलाते हुए आचार्य भिक्षु ने लिखा है-'एक साहूकार के दो स्त्रियां थीं। एक ने रोने का त्याग किया, वह धर्म का विवेक रखती थी। दूसरी धर्म का मर्म नहीं पहचानती थी। पति चल बसा। एक नहीं रोती; दूसरी रोती है। लोग आए। दूसरी की सराहना करने लगे- 'यह धन्य है, पतिव्रता है।' पहली, जो नहीं रोती, की निन्दा होने लगी-'यह पापिनी चाहती थी कि पति मर जाए। इसके आंसू क्यों आएं ?'
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