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अहिंसा तत्त्व दर्शन
होता था परन्तु वास्तव में दोनों के मार्ग में गहरा अन्तर था। महावीर दृश्यादृश्य दुःख की जड़ को उखाड़ डालना मुख्य कर्तव्य समझते थे और बुद्ध दृश्य दुःखों को दूर करना । पहले निदान को दूर कर सदा के लिए रोग से छुट्टी पाने का मार्ग बताने वाले वैद्य थे, तब दूसरे उदीर्ण रोग की शान्ति करने वाले डाक्टर। ____ करुणा और करुणापूर्ण कार्य समाज के लिए अत्यन्त आवश्यक होते हैं, इसमें कोई दो मत नहीं, किन्तु मतभेद वहां होता है, जहां उनकी अहिंसात्मकता सिद्ध की जाती है, उन्हें मोक्ष-मार्ग की साधना कहा जाता है। अहिंसा के लिए हिंसा निम्न प्रकार से की जाती है और ऐसे कार्यों को निर्दोष, अल्प-हिंसा और बहुअहिंसा के कार्य समझकर उन्हें धर्म माना जाता है। जैसे१. बड़े जीव को बचाने के लिए छोटे जीवों का वध किया जाए, उसमें अल्प दोष और बहुत लाभ है, थोड़ी हिंसा और बहुत अहिंसा है। बड़े जीवों
की रक्षा में मनुष्य को प्राथमिकता मिलनी चासिए । २. देवता और पूज्य अतिथि के लिए हिंसा करने में दोष नहीं। ३. अनिवार्य हिंसा तथा धर्म की रक्षा के लिए हिंसा हो, वह निर्दोष है। ४. दु:ख मिटा सकने की असमर्थता में दु:खी को मार डालना। ५. बहुत जीवों की रक्षा के लिए थोड़े जीवों को मार डालना। ६. पाप से बचाने के लिए पापी को मार डालना। ७. कष्ट से सुख मिलता है, इसलिए मारे जाने वाले प्राणी सुखी होंगे
इस दृष्टि से जीवों को मारना। ८. सबल के आक्रमण से निर्बल का रक्षण करने के लिए बल-प्रयोग करना,
प्रलोभन आदि देना। उक्त कार्यों में अहिंसा का स्वीकार मानसिक भ्रम है। ये कार्य करुणापूर्ण या रक्षात्मक भले हों, अहिंसात्मक नहीं होते। जैन-विचारधारा इनके अहिंसात्मक होने का समर्थन नहीं करती। महात्मा गांधी इस युग के महान् अहिंसाधर्मियों में से एक हुए हैं। उन्होंने राजनीति के क्षेत्र में अहिंसा के अनेक प्रयोग किए। वे राष्ट्रीय दायित्व को सम्हाले हुए थे, इसलिए सेवा और करुणापूर्ण कार्यों का पथ प्रदर्शन भी किया किन्तु फिर भी वे हिंसा और अहिंसा के विवेक में बड़े जागरूक रहे-ऐसा जान पड़ता है। उक्त प्रश्नों के विचार में जैन-दृष्टि के साथ-साथ महात्मा गांधी के विचार भी अधिक उपयोगी होंगे।
उक्त प्रश्नों की क्रमिक मीमांसा१. एक बड़ें जीव की रक्षा के लिए अनेक छोटे-मूक जीवों का वध करना
१. जैन विकास, वर्ष ७, अंक ६-७, 'भगवान महावीर और बुद्ध'
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