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अहिंसा तत्त्व दर्शन
दान आत्म-कल्याण का हेतु है, जो संयम का आलम्बन बने । धर्म का स्वरूप आत्मसंयम और आत्म-संतुष्टि है। भौतिक संतुष्टि और भौतिक संरक्षण अध्यात्म-धर्म नहीं है।
एक ओर वे आचार-शिथिल साधु-सन्तों की सामन्तशाही को चुनौती दे रहे थे, दूसरी ओर ऐसे विचार दे रहे थे, जो लोक-मानस के अनुकूल नहीं थे। इसलिए उन्हें संघर्षों की बाढ़ को चीरकर चलना पड़ा। उनमें शान्ति और क्रान्ति का अपूर्व संगम था, इसलिए वे कुछ सहते और कुछ कहते चलते रहे । वे कुशल योद्धा थे, अपने आपसे लड़ना जानते थे।
उनकी कठोर तपस्या और कठोर चर्या ने एक प्रकाश की किरण फेंकी, वातावरण बदल गया । अब उनके विचार भी लोक-मानस को खींचने लगे। वे साधक थे। साधना के लिए चले। सम्प्रदाय चलाने और मत बांधने की लालसा उन्हें छु तक नहीं पायी । वे तब स्थानकवासी सम्प्रदाय के आचार्यश्री रुघनाथजी से अलग हुए, सम्प्रदाय चलाने के लिए नहीं किन्तु भगवान् महावीर की वाणी के अनुसार चलने के लिए। महापुरुष चले वह मार्ग बन जाए, यह एक बात है और मार्ग चलाने के लिए चले, यह दूसरी बात । ऐसा ही हुआ। वे चले और मार्ग बन गया। वे चले किसलिए? यह उन्हीं के शब्दों में पढ़िए :
“आहार पाणी जाच कर सर्व साधु उजाड़ में परहा जावता। रूंखड़ा री छायां आहार पाणी मेल नै आतापना लेता, आथण रा पाछा गांव में आवता। इण रीत कष्ट भोगवता। कर्म काटता। म्हे या न जाणता मारो मारग जमसी ने युं दीक्षा लेसी, युं श्रावक श्राविका हुसी।म्हे तो विचारता, आत्मा रा कारज सारस्यां, मर पुरा देस्यां । इम धार विचार नै तपस्या करता।"
उनके साधन अपने-आप जुटे, उन्होंने जुटाए नहीं। उनका मार्ग तेरापंथ कहलाया। वे 'भीखणजी' इस नाम से ही पहचाने जाते रहे । जोधपुर में एक सेवक कवि ने आपके गण को तेरापंथ की संज्ञा दी। उसने तेरह की संख्या को लेकर वह नाम पुकारा । नाम चल पड़ा। आचार्य भिक्षु मेवाड़ में थे । उन्हें इसका पता चला । वे संख्या में कोई तत्त्व नहीं देखते थे। उन्होंने कहा-'प्रभो ! तेरा पंथ है। मैं इसका एक पथिक हूं।' इस प्रकार आचार्य भिक्षु के संघ का नामकरण हो गया। पहले के भीखणजी अब 'तेरापंथ भीखण' कहलाने लगे।
शिष्य-समुदाय बढ़ने लगा। साधु बने, साध्वियाँ बनीं, श्रावक-श्राविकाएं भी बने । वे अपनी गति से चलते चले। कठोर अनुशासन और मजबूत संगठन के लिए वे अपने ढंग के अकेले ही व्यक्ति थे । उनकी दिव्य-दृष्टि और शुद्धनीति से संघ की आत्मा बलवान् बन गई । सोलह वर्ष की अनुभव-परीक्षा के बाद उन्होंने भारमलजी
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