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अहिंसा तत्त्व दर्शन
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संसार तणा उपगार कियां मैं,
जिण धर्म रो अंश नहीं छै लिगार।' ___ यहां जिन-धर्म नहीं, ऐसा कहा है किन्तु एकान्त-पाप नहीं कहा। इस प्रकार आचार्य भिक्षु ने अनेक शब्द व्यवहार में लिए है, जो पहले बताए जा चुके हैं।
१. अनुकम्पा चौपई ११।३६
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